दफ्तर का बाबू – सुरेश उपाध्याय

दफ्तर का बाबू – सुरेश उपाध्याय

A hasya kavita by Suresh Upadhyay that is also a commentary on the state of affairs in India – Rajiv Krishna Saxena

दफ्तर का बाबू

दफ्तर का एक बाबू मरा
सीधा नरक में जा कर गिरा
न तो उसे कोई दुख हुआ
ना ही वो घबराया
यों खुशी में झूम कर चिल्लाया–
‘वाह वाह क्या व्यवस्था है‚ क्या सुविधा है‚
क्या शान है! नरक के निर्माता तू कितना महान है!

आंखों में क्रोध लिये यमराज प्रगट हुए
बोले‚
‘नादान दुख और पीड़ा का
यह कष्टकारी दलदल भी
तुझे शानदार नज़र आ रहा है?’
बाबू ने कहा‚
‘माफ करें यमराज।
आप शायद नहीं जानते
कि बंदा सीधा हिंदुस्तान से आ रहा है।’

~ सुरेश उपाध्याय

लिंक्स:

 

Check Also

Dhritrashtra ponders about the Mahabharata war

धृतराष्ट्र की प्रतीक्षा: राजीव कृष्ण सक्सेना

धृतराष्ट्र  की प्रतीक्षा सूर्यास्त हो चल था नभ में पर रश्मि अभी कुछ बाकी थी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *