प्रभाती – रघुवीर सहाय

प्रभाती – रघुवीर सहाय

Life is short. Every thing is momentary, nothing lasts. Here is a nice poem by Raghubir Sahai – Rajiv Krishna Saxena

प्रभाती

आया प्रभात
चंदा जग से कर चुका बात
गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात
अनगिन किरणों की भीड़ भाड़ से भूल गये
पथ‚ और खो गये वे तारे।

अब स्वप्नलोक
के वे अविकल शीतल अशोक
पल जो अब तक वे फैल फैल कर रहे रोक
गतिवान समय की तेज़ चाल
अपने जीवन की क्षण–भंगुरता से हारे।

जागे जन–जन‚
ज्योतिर्मय हो दिन का क्षण क्षण
ओ स्वप्नप्रिये‚ उन्मीलित कर दे आलिंगन।
इस गरम सुबह‚ तपती दुपहर
में निकल पड़े।
श्रमजीवी‚ धरती के प्यारे।

∼ रघुवीर सहाय

लिंक्स:

 

Check Also

Kabir ke dohe

कबीर के दोहे – कबीर

Kabir (1440AD to 1518AD) was one of the early saints of bhakti kaal who lived …

One comment

  1. Can I get the summary of this poem?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *