पिता सरीखे गांव - राजेंद्र गौतम

पिता सरीखे गांव – राजेंद्र गौतम

How things change! In this age, things we experienced in childhood have vanished; gone for ever. Only memories remain. Check out this poem by Rajendra Gautam – Rajiv Krishna Saxena

पिता सरीखे गांव

तुम भी कितने बदल गये हो
पिता सरीखे गांव!

परंपराओं का बरगद सा
कटा हुआ यह तन
बो देता है रोम रोम में
बेचैनी सिहरन
तभी तुम्हारी ओर उठे ये
ठिठके रहते पांव।

जिसकी वत्सलता में डूबे
कभी सभी संत्रास
पच्छिम वाले
उस पोखर की
सड़ती रहती लाश
किसमें छोड़ें
सपनों वाली काग़ज की यह नाव!

इस नक्शे से
मिटा दिया है किसने मेरा घर
बेखटके क्यों घूम रहा है
एक बनैला डर!
मंदिर वाले पीपल की भी
घायल हैं अब छांव!

~ राजेंद्र गौतम

लिंक्स:

 

Check Also

Holi aai re...

होली आयी रे – शकील बदायूंनी

On the Happy occasion of Holi, I present this old classic from film Mother India, …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *