भर दिया जाम - बालस्वरूप राही

भर दिया जाम – बालस्वरूप राही

A life of desperation and one hardly sees a point of keep living. But enter love and the things don’t look so bad anymore… Rajiv Krishna Saxena

भर दिया जाम

भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे!

वैसे तो मैं कब से दुनियाँ से ऊब चुका,
मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका,
पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो–
मैं सोच रहा हूँ हाय मरूं तो भी कैसे!

मंजिल अनजानी पथ की भी पहचान नहीं,
है थकी थकी–सी साँस, पाँव में जान नहीं,
पर जब तक तुम चल रहीं साथ मधुरे, मेरे
मैं हार मान अपनी ठहरूं भी तो कैसे!

मंझधार बहुत गहरी है, पतवारें टूटीं,
यह नाव समझ लो, अब डूबी या तब डूबी,
पर यह जो तुमने पाल तान दी आँचल की,
जब मैं लहरों से प्राण डरूँ भी तो कैसे

भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे!

∼ बालस्वरूप राही

लिंक्स:

 

Check Also

Dhritrashtra ponders about the Mahabharata war

धृतराष्ट्र की प्रतीक्षा: राजीव कृष्ण सक्सेना

धृतराष्ट्र  की प्रतीक्षा सूर्यास्त हो चल था नभ में पर रश्मि अभी कुछ बाकी थी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *