धृतराष्ट्र की प्रतीक्षा सूर्यास्त हो चल था नभ में पर रश्मि अभी कुछ बाकी थी अनजानी सी अनकही व्यथा चहुं ओर महल में व्यापी थी धृतराष्ट्र मौन हो बैठे थे कर रहो प्रतीक्षा संजय की गुनते थे रण में क्या होगा चिंता पुत्रों की जय की थी कुछ दिवस पूर्व …
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Geeta-Kavita Collection of Hindi poems & articles
