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धृतराष्ट्र की प्रतीक्षा: राजीव कृष्ण सक्सेना

Dhritrashtra ponders about the Mahabharata war

धृतराष्ट्र  की प्रतीक्षा सूर्यास्त हो चल था नभ में पर रश्मि अभी कुछ बाकी थी अनजानी सी अनकही व्यथा चहुं   ओर महल में व्यापी थी धृतराष्ट्र मौन हो बैठे थे कर रहो प्रतीक्षा संजय की गुनते थे रण में क्या होगा चिंता पुत्रों की जय की थी कुछ दिवस पूर्व …

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