हवाएँ ना जाने – परमानन्द श्रीवास्तव

हवाएँ ना जाने – परमानन्द श्रीवास्तव

It is tempting to follow things that entice. But where would that lead us? Rajiv Krishna Saxena

हवाएँ ना जाने

हवाएँ
ना जाने कहाँ ले जाएँ।

यह हँसी का छोर उजला
यह चमक नीली
कहाँ ले जाए तुम्हारी
आँख सपनीली

चमकता आकाश–जल हो
चाँद प्यारा हो
फूल–जैसा तन, सुरभि सा
मन तुम्हारा हो

महकते वन हों
नदी जैसी चमकती चाँदनी हो
स्वप्न डूबे जंगलों में
गन्ध–डूबी यामिनी हो

एक अनजानी नियति से
बँधी जो सारी दिशाएँ
न जाने
कहाँ ले जाएँ

∼ परमानन्द श्रीवास्तव

लिंक्स:

 

Check Also

कुँवर सिंह का विद्रोह – प्रसिद्ध नारायण सिंह

I recently visited Jhansi and as I am a great admirer or Rani Laxmibai, I …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *