दीवाली आने वाली है - राजीव कृष्ण सक्सेना
खील, बताशे, हटरी प्यारी, घी के दीये की छब न्यारी, चीनी के स्वदिष्ट खिलौने, लक्ष्मी–पूजन की तैयारी!

दीवाली आने वाली है – राजीव कृष्ण सक्सेना

Introduction:

Deepawali is the queen of all festivals. What a fun! Once Dussehra is over, everyone eagerly awaits Diwali. Here are few colors and sheer exhilarations associated with Diwali. Rajiv Krishna Saxena

दीवाली आने वाली है

मानसून काफूर हो गया
रावण का भी दहन हो गया
ठंडी–ठंडी हवा चली है
मतवाली अब गली–गली है
पापा, मम्मी, भैय्या, भाभी
बूआ, चाचा, दादा, दादी
राह सभी तकते हैं मिल कर
हर मन को भाने वाली है
दीवाली आने वाली है

चॉकलेट को छोड़ो भाई
देसी है दमदार मिठाई
लड्डू, पेड़ा, कलाकंद है
बरफी दानेदार नरम है
गरम जलेबी, मस्त पतीसा
खोए–वाला परवल मीठा
पेठे रंग बिरंगे, चम–चम
काला जाम बहुत है यम–यम
रसगुल्ले को गप–गप खालो
रबड़ी के तुम मजे उड़ा लो
मोटा कर जाने वाली है
दीवाली आने वाली है।

बिजली की लड़ियों को छोड़ें
मोमबत्तियाँ लेकर आएँ
रंग बिरंगी सजी कतारें
मिलजुल कर सब उन्हें जलाएँ
कितनी सुंदर छटा निराली
मन मोहक उनका उजियाला
उनके संग जलेगी हिल–मिल
मिट्टी के दीयों की माला
मुस्कानें लाने वाली है
दीवाली आने वाली है

खील, बताशे, हटरी प्यारी
घी के दीये की छब न्यारी
चीनी के स्वदिष्ट खिलौने
लक्ष्मी–पूजन की तैयारी
मत भूलो घर के अंदर भी
रंग सफेदी करवानी हैं
साफ सफाई, चौक पुराई
वन्दनवारें लगवानी हैं
धुनी रूई से भरी रज़ाई
मन को हर्षाने वाली है
दीवाली आने वाली है

जिद पूरी करनी ही होगी
बच्चों ने मन में ठानी है
पापा के संग बाहर जाकर
फुलझड़ियाँ, चकरी लानी हैं
बाज़ारों में भीड़भड़क्का
रंग बिरंगी जग–मग जग–मग
खेल–खिलौने, चाट–पकौड़े
सभी तरफ रौनक ही रौनक
मस्ती अब छाने वाली है
दीवाली आने वाली

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

Oct 12, 2011

लिंक्स:

Copy Right:  This poem or any part of it, cannot be used in any form and in any kind of media, without the written permission from the author Prof. Rajiv K Saxena. Legal action would be taken if an unauthorized use of this material is found. For permission enquiries may be sent to rajivksaxena@gmail.com or admin@geeta-kavita.com.

Check Also

Didi ke dhool bhare paon

दीदी के धूल भरे पाँव – धर्मवीर भारती

A lovely poem of Dr. Draramvir Bharti depicting the nostalgia  associated with village home that …

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *