प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी – धर्मवीर भारती

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी – धर्मवीर भारती

Too much contemplation and too high an intellect in men kill faith and ability to pray. Faith may however persist in woman of the house and this simple ability to pray to the almighty, makes the man envious, indeed grateful in a sense. Here is a beautiful poem by Dharamvir Bharati – Rajiv Krishna Saxena

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
बाँध देती है तुम्हारा मन, हमारा मन,
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में डूबन
मिलती मुझे राहत बड़ी।

प्रात सद्य:स्नात, कन्धों पर बिखेरे केश
आँसुओं में ज्यों, धुला वैराग्य का सन्देश
चूमती रह-रह, बदन को अर्चना की धूप
यह सरल निष्काम, पूजा-सा तुम्हारा रूप
जी सकूँगा सौ जनम अंधियारियों में, यदि मुझे
मिलती रहे, काले तमस की छाँह में
ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी।
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी…

चरण वे जो, लक्ष्य तक चलने नहीं पाए
वे समर्पण जो न, होठों तक कभी आए
कामनाएँ वे नहीं, जो हो सकीं पूरी
घुटन, अकुलाहट, विवशता, दर्द, मजबूरी
जन्म-जन्मों की अधूरी साधना, पूर्ण होती है
किसी मधु-देवता, की बाँह में
ज़िन्दगी में जो सदा झूठी पड़ी।
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी…

∼ धर्मवीर भारती

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