जिंदगी - बुद्धिनाथ मिश्रा

जिंदगी – बुद्धिनाथ मिश्रा

Social norms and society itself is changing so fast today that it bewilders the observer. There is a sense of loss and nostalgia. Here is a nice poem by Budhinath Mishra. Rajiv Krishna Saxena

जिंदगी

जिंदगी अभिशाप भी, वरदान भी
जिंदगी दुख में पला अरमान भी
क़र्ज साँसों का चुकाती जा रही
जिंदगी है मौत पर अहसान भी।

वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने
भावना की अनसुनी आवाज थे
बादलों में घर बसाने के लिये
चंद तिनके ले उड़े परवाज थे
दब गये इतिहास के पन्नों तले
तितलियों के पंख, नन्ही जान भी।

कौन करता याद अब उस दौर को
जब गरीबी भी कटी आराम से
गर्दिशों की मार को सहते हुए
लोग रिश्ता जोड़ बैठे राम से
राजसुख से प्रिय जिन्हें बनवास था
किस तरह के थे यहां इन्सान भी।

आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं
हर थकन के बाद मीठी नींद अब
हर कदम पर बोलियों की बेड़ियाँ
जिंदगी घुड़दौड़ की मानिन्द अब
आँख में आँसू नहीं, काजल नहीं
होंठ पर दिखती न वह मुस्कान भी।

~ बुद्धिनाथ मिश्रा

लिंक्स:

 

Check Also

Holi aai re...

होली आयी रे – शकील बदायूंनी

On the Happy occasion of Holi, I present this old classic from film Mother India, …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *