सृष्टि – सुमित्रानंदन पंत

सृष्टि – सुमित्रानंदन पंत

An entity may be small and negligible but it may have a potential to evolve into a huge object full of grandeur. A tiny seed buried in the earth may grow into a huge tree. Here is a lovely poem of Sumitranandan Pant. Rajiv Krishna Saxena

सृष्टि

मिट्टी का गहरा अंधकार,
डूबा है उस में एक बीज
वह खो न गया, मिट्टी न बना
कोदों, सरसों से शुद्र चीज!

उस छोटे उर में छुपे हुए
हैं डाल–पात औ’ स्कन्ध–मूल
गहरी हरीतिमा की संसृति
बहु रूप–रंग, फल और फूल!

वह है मुट्ठी में बंद किये
वट के पादप का महाकार
संसार एक! आशचर्य एक!
वह एक बूंद, सागर अपार!

बंदी उसमें जीवन–अंकुर
जो तोड़ निखिल जग के बंधन
पाने को है निज सत्त्व, मुक्ति!
जड़ निद्रा से जग, बन चेतन

आः भेद न सका सृजन रहस्य
कोई भी! वह जो शुद्र पोत
उसमे अनंत का है निवास
वह जग जीवन से ओत प्रोत!

मिट्टी का गहरा अंधकार
सोया है उसमें एक बीज
उसका प्रकाश उसके भीतर
वह अमर पुत्र! वह तुच्छ चीज?

∼ सुमित्रानंदन पंत

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