देखो, टूट रहा है तारा – हरिवंश राय बच्चन

देखो, टूट रहा है तारा – हरिवंश राय बच्चन

In the night sky, a star falls and vanishes in horizon. In this short lovely poem Bachchan Ji likens it to the short and un-sung human life. Rajiv Krishna Saxena

देखो, टूट रहा है तारा।

नभ के सीमाहीन पटल पर
एक चमकती रेखा चलकर
लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा का दीप दुलारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

हुआ न उडुगन में क्रंदन भी,
गिरे न आँसू के दो कण भी
किसके उर में आह उठेगी होगा जब लघु अंत हमारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

यह परवशता या निर्ममता
निर्बलता या बल की क्षमता
मिटता एक, देखता रहता दूर खड़ा तारक-दल सारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

∼ हरिवंश राय बच्चन

लिंक्स:

 

Check Also

Things we are losing in Indian society

ढूंढते रह जाओगे – अरुण जैमिनी

Times are changing fast. So many things we witnessed in our childhood appear to have …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *