आज ही होगा – बालकृष्ण राव

Go ahead and do it, if you feel a strong motivation arising some where deep inside you.  Because “उमंगें यूं अकारण ही नहीं उठतीं,…”. This poem touches somewhere deep… What a magic Balkrishna Rao  Ji has woven!  – Rajiv Krishna Saxena

आज ही होगा 

मनाना चाहता है आज ही?
­तो मान ले
त्यौहार का दिन आज ही होगा।

उमंगें यूं अकारण ही नहीं उठतीं,
न अनदेखे इशारों पर
कभी यूं नाचता मन
खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के
बढ़ा पग,
मूर्ति के श्रंगार का दिन
आज ही होगा।

न जाने आज क्यों दिल चाहता है ­
स्वर मिला कर
अनसुने स्वर में किसी के
कर उठे जयकार।

न जाने क्यों
बिना पाये हुए भी दान
याचक मन
विकल है
व्यक्त करने के लिये आभार।

कोई तो, कहीं तो
प्रेरणा का स्रोत होगा ही ­
उमंगें यूं अकारण ही नहीं उठतीं,
नदी में बाढ़ आई है
कहीं पानी गिरा होगा।

अचानक शिथिल­बंधन हो रहा है आज
मोक्षासन्न बंदी मन ­
किसी की तो
कहीं कोई भगीरथ­ साधना पूरी हुई होगी,
किसी भागीरथी के
भूमि पर अवतार का दिन
आज ही होगा।

बाल कृष्ण राव

लिंक्स:

Check Also

Maharana Pratap

प्रताप की प्रतिज्ञा – श्याम नारायण पांडेय

Mansingh, a Rajput, ( “Maan” in first line of third stanza) had aligned with Emperor …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *