ठहर जाओ – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

ठहर जाओ – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

How the sight of the lover lights up one’s heart! Hera is a lovely poem by Rameshwer Shukla Anchal. Rajiv Krishna Saxena

ठहर जाओ

ठहर जाओ, घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।

अभी कुछ देर मेरे कान में गूंजे तुम्हारा स्वर
बहे प्रतिरोग में मेरे सरस उल्लास का निर्झर,
बुझे दिल का दिया शायद किरण-सा खिल ऊठे जलकर
ठहर जाओ, घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।

तुम्हारे रूप का सित आवरण कितना मुझे शीतल
तुम्हारे कंठ की मृदु बंसरी जलधार सी चंचल
तुम्हारे चितवनों की छाँह मेरी कामना उज्जवल
उलझतीं फड़फड़ातीं प्राणपंछी की तरुण पाँखें

लुटाता फूल-सौरभ सा तुम्हें मधुवात ले आया
गगन की दूधिया गंगा लिए ज्यों शशि उतर आया
ढहे मन के महल में भर गयी किस स्वप्न की माया
ठहर जाओ, घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।

मुझे लगता तुम्हारे सामने मैं सत्य बन जाता
न मेरी पूर्णता को देवता कोई पहुँच पाता
मुझे चिर प्यास वह अमरत्व जिससे जगमगा जाता
ठहर जाओ, घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।

∼ रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

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कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
लेख:  सम्पूर्ण तालिका
गीता-कविता: हमारे बारे में
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प्रोफेसर राजीव सक्सेना

 

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