उग आया है चाँँद - नरेंद्र शर्मा

उग आया है चाँँद – नरेंद्र शर्मा

Here is a lovely description of moon rising over a quiet forest. Rajiv Krishna Saxena

उग आया है चाँँद

सूरज डूब गया बल्ली भर –
सागर के अथाह जल में।
एक बाँँस भर उग आया है –
चाँद‚ ताड़ के जंगल में।

अगणित उँगली खोल‚ ताड़ के पत्र‚ चाँदनीं में डोले,
ऐसा लगा‚ ताड़ का जंगल सोया रजत–पत्र खोले‚

कौन कहे‚ मन कहाँ–कहाँ
हो आया‚ आज एक पल में।

बनता मन का मुकुल इन्दु जो मौन गगन में ही रहता‚
बनता मन का मुकुल सिंधु जो गरज–गरज कर कुछ कहता‚

शशि बन कर मन चढ़ा गगन पर
रवि बन छिपा सिंधु–तल में।

परिक्रमा कर रहा किसी की मन बन चाँद और सूरज‚
सिंधु किसी का हृदय–दोल है देह किसी की है भू–रज‚

मन को खेल सिखाता कोई
निशि दिन के छाया–छल में।
एक बाँँस भर उग आया है
चाँद ताड़ के जंगल में।

~ नरेंद्र शर्मा

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