तुम्हारी उम्र वासंती – दिनेश प्रभात

तुम्हारी उम्र वासंती – दिनेश प्रभात

Here is a lovely and romantic poem in praise of love. Enjoy the imagination of the poet. Rajiv Krishna Saxena

तुम्हारी उम्र वासंती

लिखी हे नाम यह किसके,
तुम्हारी उम्र वासंती?
अधर पर रेशमी बातें,
नयन में मखमली सपने।
लटें उन्मुक्त­सी होकर,
लगीं ऊंचाइयाँ नपनें।
शहर में हैं सभी निर्थन,
तुम्हीं हो सिर्फ धनवंती।

तुम्हारा रूप अंगूरी
तुम्हारी देह नारंगी।
स्वरों में बोलती वीणा
हँसी जैसे कि सारंगी।
मुझे डर है न बन जाओ
कहीं तुम एक किंवदंती।

तुम्हें यदि देख ले तो,
ईष्र्या वो उर्वशी कर ले।
झलक यदि मेनका पा ले,
तो समझो खुदकुशी कर ले।
कहो तो प्यार से रख दूँ,
तुम्हारा नाम वैजंती।

धवल सी देह के आगे,
शरद का चाँद भी फीका।
सुकोमल गल पर का तिल,
नजर का लग रहा टीका।
तुम्हारा कौन राज नल?
बताओ आज दमयंती।

∼ दिनेश प्रभात

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