आशा कम विश्वास बहुत है – बलबीर सिंह ‘रंग’

Here is a nice poem by Balbir Singh Rang showing the perils of an one sided love. – Rajiv Krishna Saxena

आशा कम विश्वास बहुत है

जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम‚ विश्वास बहुत है।

सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है
विरहातप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है‚
मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम‚ विश्वास बहुत है।

धन्य धन्य मेरी लघुता को‚ जिसने तुम्हें महान बनाया‚
धन्य तुम्हारी स्नेह–कृपणता‚ जिसने मुझे उदार बनाया‚
मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है
जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम‚ विश्वास बहुत है।

अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल जल मरते
एक बूंद की अभिलाषा में कोटि कोटि चातक तप करते‚
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है
जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम‚ विश्वास बहुत है।

मैंनें आंखें खोल देख ली है नादानी उन्मादों की
मैंनें सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसादों की‚
फिर भी जीवन के पृष्ठों में पढ़ने को इतिहास बहुत है
जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम विश्वास बहुत है।

ओ! जीवन के थके पखेरू‚ बढ़े चलो हिम्मत मत हारो‚
पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो‚
क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है
जानें क्यों तुमसे मिलने की आशा कम‚ विश्वास बहुत है।

~ बलबीर सिंह ‘रंग’

लिंक्स:

 

Check Also

You say some thing, I say some thing

कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी

Life is to be shared. It becomes very boring if it is not. Our daily …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *