Frustrated from political corruption
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है, आप कहते है क्षणिक उत्तेजना है।

मत कहो आकाश में कोहरा घना है – दुष्यंत कुमार

There are problems all around, and frustrations. How do we cope with these? Here is a well know poem by Dushyant Kumar. Criticism of clandestine operations that straight persons are incapable of, in the last stanza is very beautifully put. Rajiv Krishna Saxena

मत कहो आकाश में कोहरा घना है

मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है।

इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँँव घुटनों तक सना है।

पक्ष औ’ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है।

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते है क्षणिक उत्तेजना है।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।

दोस्तो अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नैपथ्य में संभावना है।

∼ दुष्यंत कुमार

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One comment

  1. Devesh Chaturvedi

    राज्य और समाज-व्यवस्था पर ऐसा तीखा व्यंग्य वो भी 60 के दशक में,… और अब किसी की हैसियत है ऐसा कुछ लिखने की सीधे सीधे….और फिर भी लोग आज अंधे हुए जा रहे हैं, अक्ल से.. हे राम

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