कौन यह तूफ़ान रोके – हरिवंश राय बच्चन

कौन यह तूफ़ान रोके – हरिवंश राय बच्चन

Given a choice, we all would like to live a peaceful life. But peace eludes us. There are stretches in our lives where we face extreme turbulence and feel helpless. There is no alternative but to bear these phases. Here is a lovely poem by Bachchan – Rajiv Krishna Saxena

कौन यह तूफान रोके!

हिल उठे जिनसे समुंदर‚
हिल उठे दिशि और अंबर
हिल उठे जिससे धरा के!
वन सघन कर शब्द हर–हर!

उस बवंडर के झकोरे
किस तरह इंसान रोके!
कौन यह तूफान रोके!

उठ गया‚ लो‚ पांव मेरा‚
छुट गया‚ लो‚ ठांव मेरा‚
अलविदा‚ ऐ साथ वालो
और मेरा पंथ डेरा;

तुम न चाहो‚ मैं न चाहूं‚
कौन भाग्य–विधान रोके!
कौन यह तूफान रोके!

आज मेरा दिल बड़ा है‚
आज मेरा दिल चढ़ा है‚
हो गया बेकार सारा‚
जो लिखा है‚ जो पढ़ा है‚

रुक नहीं सकते हृदय के‚
आज तो अरमान रोके!
कौन यह तूफान रोके!

आज करते हैं इशारे‚
उच्चतम नभ के सितारे‚
निम्नतम घाटी डराती‚
आज अपना मुह पसारे;
एक पल नीचे नजर है‚
एक पल ऊपर नजर है;

कौन मेरे अश्रु थामे‚
कौन मेरे गान रोके!
कौन यह तूफान रोके!

∼ हरिवंश राय बच्चन

लिंक्स:

 

Check Also

Kabir ke dohe

कबीर के दोहे – कबीर

Kabir (1440AD to 1518AD) was one of the early saints of bhakti kaal who lived …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *