गीत का पहला चरण हूं – इंदिरा गौड़

गीत का पहला चरण हूं – इंदिरा गौड़

Those are magical moments when one feels that he or she is about to fall in love. Feelings have not yet found expression and undeclared love is impatient and apprehensive. Read this lovely poem of Indira Gaud. I find last two lines especially enchanting – Rajiv Krishna Saxena

गीत का पहला चरण हूं

गुनगुनाओ तो सही तुम तनिक मुझको
मैं तुम्हारे गीत का पहला चरण हूं।

जब तलक अनुभूत सच की
शब्द यात्रा है अधूरी
झेलनी है प्राण को
गंतव्य से तब तलक दूरी
समझ पाया आज तक कोई न जिसको
उस अजानी सी व्यथा का व्याकरण हूं।

अधिकतर संबंध ऐसे
राह में जो छोड़ देते
प्राण तक गहरे न उतरें
सतह पर दम तोड़ देते
बहुत कम होता सही अनुवाद मेरा
प्रश्न पत्रों का अदेखा अवतरण हूं।

कुछ गिनी सांसें मिली हैं
एक भी घट–बढ़ न पाती
जन्म के संग मृत्यु आई
हर समय सांकल बजाती
चल रहा है सृष्टि में हर पल निरंतर
जो कभी रुकता नहीं ऐसा क्षरण हूं।

जन्म से ले मृत्यु तक का
सफर जाने कब कटेगा
रात के अंतिम प्रहर में
कुछ कुहासा तो कटेगा
देव–मंदिर में जले मन आरती–सा
प्रार्थना से पूर्व का वातावरण हूं।

∼ इंदिरा गौड़

लिंक्स:

 

Check Also

जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए – शांति सिंहल

Women have a world view that is very different from that of men. Women may …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *