बस इतना सा समाचार है - अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’

बस इतना सा समाचार है – अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’

Here is a lovely poem, a very apt commentary on contemporary Indian society by Amitabh Tripathi. Public watches helplessly as corruption eats into very soul of the country. Rajiv Krishna Saxena

बस इतना सा समाचार है

जितना अधिक पचाया जिसने
उतनी ही छोटी डकार है
बस इतना सा समाचार है।

निर्धन देश धनी रखवाले
भाई‚ चाचा‚ बीवी‚ साले
सब ने मिल कर डाके डाले
शेष बचा सो राम हवाले
फिर भी सांस ले रहा अब तक
कोई दैवी चमत्कार है
बस इतना सा समाचार है।

चादर कितनी फटी पुरानी
पैबंदों में खींची–तानी
लाठी की चलती मनमानी
हैं तटस्थ सब ज्ञानी–ध्यानी
जितना ऊँचा घूर‚ दूर तक
उतनी मुर्गे की पुकार है
बस इतना सा समाचार है।

पढ़े लिखे सब फेल हो गये
कोल्हू के से बैल हो गये
चमचा‚ मक्खन‚ तेल हो गये
समीकरण बेमेल हो गये
तिकड़म की कमन्द पर चढ़कर
सिद्ध–जुआरी किला पार है
बस इतना सा समाचार है।

जंतर–मंतर टोटक टोना
बाँधा घर का कोना–कोना
सोने के बिस्तर पर सोना
जेल–कचहरी से क्या होना
करे अदालत जब तक निर्णय
धन कुनबा सब सिंधु–पार है
बस इतना सा समाचार है।

मन को ढाढस लाख बंधाऊँ
चमकीले सपने दिखलाऊँ
परी देश की कथा सुनाऊँ
घिसी वीर–गाथाएँ गाऊँ
किस खम्बे पर करूँ भरोसा
सब पर दीमक की कतार है
बस इतना सा समाचार है।

∼ अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’

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