Introduction:
कालाधन – सर्जिकल स्ट्राइक

आठ नवंबर 2016 की रात एक ऐतिहासिक रात मानी जाएगी। प्र्रधान मंत्री मोदी जी ने घोषणा की कि मध्य रात्रि से 500 और 1000 रुपये के नोट रद्द कर दिये जाएँगे। सभी चौंक गए और चारो ओर खलबली सी मच गई। ऐसा करने की बात सभी करते थे पर यह भी कहते थे कि ऐसा करने की हिम्मत किसी राजनेता या राजनीतिक दल में नहीं है। फिल्म पाक़ीजा का डायलाग है “हजारो साल से नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बहुत मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा”। हमें अचरज़ था कि ऐसा हो रहा था। हमने अपने पैसे गिने और पाया कि घर खर्चे के लिये लगभग 20 हजार रुपये 500 और 1000 के नोटों में हमारे पास थे।यह नोट मध्य रात्रि से बेकार हो जाएँगे यह चिंता की बात थी। पर फिर पता चला कि यह धन दिसंबर के अंत तक अपने बैंक खाातों में जमा कराए जा सकते हैं। हम तो निश्चिंत हो गए। सौ सौ रुपये के दस बीस नोट भी हमारे पास थे इसलिये कुछ खास समस्या मुझे नहीं लगी।
अगले कई दिनो तक टी वी पर देखा कि चंद सौ रुपये के नोटों के लिये लोगों में बहुत परेशानी थी। एटीएम और बैंकों में बेइंतहा भीड़ लगी रही और महिलाओं एवं बुजुर्गों के विशेष कठिनाई का सामना करना पड़ा। लोगों की परेशानी को कुछ राजनीतिक दल विशेषतः कांग्रेस, समाजवादी दल, बहुजन समाज दल और आम आदमी पार्टी भुनाने का प्रयत्न भी करते देखे गए। पर अधिकतर आम नागरिक टीवी पर लगातार यह कहते दिखे कि यद्यपि कठिनाइयाँ अवश्य हैं पर वे मोदी जी के इस कदम का पूर्ण समर्थन करते हैं।ऐसा प्रतीत हुआ कि इस कदाम के दूरगामी सकारात्मक प्रभाव से लोग अवगत थे।
कठिनाई सह कर भी जब जनता–जनार्दन समाज और देश की भलाई के लिये एक जुट हो कर चलती है, वह एक खूशी के आँसू बहाने का समय होता है। मेरी आँखों में लोगों का यह जज़बा देख कर अक्सर पानी भर आया। मुझे याद आया जब लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर हमारे परिवार ने एक दिन अन्न खाना बंद कर दिया था क्यों कि देश में गेहूँ का अभाव था। हमी ने नहीं पर पूरे देश ने यह किया। मुझे याद आया जब अखबार में एक महिला पुलिस कर्मीं का फोटो अपने देश पर शहीद हुए पति की अर्थी को सैल्यूट करते छपा तब पूरे दे्श की आँखें भर आईं। जब भी अपनी खुद की चिंता छोड़ कर जब कोई देश या समाज की खातिर ऊपर उठता है तब हाथ स्वतः ही आदर से जुड़ जाते हैं व सिर नतमस्तक हो जाता है। काले धन को समाप्त करने की मुहीम में एटीएम और बैंकों के आस पास परेशानियों से जूझते समन्य लोगों को देख कर भी ऐसा ही अहसास हुआ।
मैं सोचता रहा कि आखिर कैश हम जेब में किस लिये रखते हैं और इसकी इतनी आवश्यकता क्यों है। सोच विचार का निषकर्श निकला कि हम आदतन ऐसा करते हैं। वस्तुतः अधिक कैश रखने की कोई विशेष आवश्यक्ता है ही नहीं। मैं अमरीका और यूरोप में लंबे अरसे तक रहा हूँ। वहाँ लोग बटुए में थोड़ा सा ही पैसा रखते हैं। बाज़ार की खरीद फरोख्त में क्रैडिट और डैबिट कार्ड ही चलते हैं। बिजली पानी एवं केबल टीवी के बिल अॉन लाइन पर भर दिये जाते हैं।

भारत में भी यहा संभव है। आजकल मदर डेयरी पर दूध इत्यादि का भुगतान पेटीएम द्वारा हो सकता है। ऐसा मालूम होते हुए भी मैं पिछले एक साल से कैश से की भुगतान कर रहा था। अब कैश की मुश्किल हुई तो पेटीएम आजमाया और कुछ ही क्षणों में भुगतान होकर मेरे फोन पर रसीद आ गई। अगर पेटीएम या इस जैसी ही कुछ अन्य सेवाएं रेहड़ी पर फल सब्जी. बेचने वाले, रिक्शा चलाने वाले, किराना दुकानदार अथवा हलवाई इत्यादि प्रयाग में लाएँ तो फिर कैश रखने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
मैं देखता हूँ कि अभी भी कई लोग बिजली, पानी एवं मोबाइल फोन के बिल कैश में जमा करवाते हैं। इससे न केवल समय बर्बाद होता है पर बेकार में ही कैश रखने की ज़हमत भी उठानी पड़ती है। यह सब आदतन की होता है। मेरे अपने सारे इस तरह के बिल मेरी ऑन लाइन बैंक की सइट पर आते हैं और खुद ब खुद उनका भुगतान हो जाता है। कहीं जाने का झंझट नहीं होता। जो लोग बिल भुगतान के लिये दौड़ धूप करते हैं वे केवल इस लिये कि नई बैंकिंग पद्यतियों को सीखने में उन्हें आलस आता है या झिझक होती है। यकीन मानिये इस में कुछ भी कठिन नहीं है। नई बैंकिंग प्रणालियाँ बेहद आसान हैं और निशुल्क हैं। एक कदम जो मोदी सरकार उठा सकती थी वह यह था कि जब जन–धन की योजना के तहद करोड़ो बैंक खाते खोले गए तभी इंटरनैट बैंकिंग की प्रणालियों से भी आम जनता को अवगत कराया जा सकता। अगर ऐसा होता तो यकीनन ऐसी परेशानी न होती जो 500 और 1000 के नोटों को समप्त करने पर जनता में देखी गई।
एक प्रसिद्ध गाने की लाइनें हैं कि “चाँद के दर पर जा पहुँचा है आज जमाना, नये जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं। नया खून है, नई उमंगें, अब है नई जवानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी”। सो नए जगत से नाता हमे जोड़ना ही होगा। अगर इस देश को दुनियाँ के साथ बढ़ना है तो नई चीजों को सीखने को हमें तत्पर रहना होगा। ऐसा हम कई क्षेत्रों में कर भी रहे हैं। जब मैं बच्चा था तब 100 हिंदुस्तानियों पर एक से भी कम टैलीफोन होता था। अब मोबाइल फोन के जमाने में लगभग सभी के पास फोन होता है।
मोबाइल फोन एक जबरदस्त सुविधा है और हम सब नें इस सुविधा को ब्ड़ी बाखूबी से अपनाया है। मात्र फोन पर बात करा पाना ही इसका ध्येय नहीं है। इससे हम बैंकिंग एवम इंटरनैट की सभी सुविधाएँ घर बैठे बैठे प्राप्त कर सकते हैं। अगर हम ऐसा नहीं करते तो यह मात्र पुरानी आदतों को नहीं बदल सकने की समस्या है। इससे हमें मुक्ति पानी ही होगी।

पिछले लगभग सत्तर सालों से अधिकतर कांग्रेस ने देश की बागडोर थाम रखी थी। उन्होंने देश की प्रगति पर ध्यान तो दिया पर उसकी रफ्तार बहुत कम रही। देश 3 प्रतिशत की मामूली “हिंदू ग्रोथ रेट” यानी कि कछुए की चाल से ही आगे बढ़ पाया। चालिस वर्ष पहले चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश हमसे पीछे थे पर अब वे हम से बहुत आगे हैं। इसका कारण हमारी न्यून प्रगति की दर ही है। जब से हिंदुस्तानी बाहर के देशों में जाने लगे हैं जनता को शनै शनै पता चल रहा है कि हम कितने पिछड़े हैं।
हमारी वर्तमान हालत के लिये भ्रष्टाचार जो कि हमारे समाज में गहरी जड़ें जमा चुका है, बहुत हद तक जिम्मेवार है। अभी कोई नेता टीवी पर कह रहे थे कि कांग्रेस ने कभी भी भ्रष्टाचार को देश के लिये घातक नहीं समझा और इससे समन्वय कर के वह देश चलाती रही। पिछली यूपीए के दस सालों में भ्रष्टाचार एक दानवीय एवं भयानक रूप में समाज के सामने आया। ऐसा लगता था कि जिधर देखो नेता और बिचौलिये पैसे बनाने में लगे हुए थे। कितने ही मुकदमे चले और राजनेता जेल में भी गये पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई शक्तिशाली प्रयास नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि भ्रष्टाचार के पेड़ ने देश में गहरी जड़ें जमा लीं।
मोदी जी नें चुनावों में ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ने की बात कही और सरकार बनाने के बाद भ्रष्टाचार को मिटाने के लिये एक के बाद एक शक्तिशाली कदम उठाए। हम सब को मालूम है कि भ्रष्टाचार से कमाया पैसा कैश में ही रखा जाता है। सभी को पता है कि भ्रष्ट लोग अपने घरों में सैकड़ों से हजारो करोड़ तक रुपये कैश में रखते हैं। ऐसे लोगों के पास बोरियाँ, अलमारियाँ और कभी–कभी कमरे भर–भर के 500 और 1000 रुपये की गड्डियों के भंडार होते हैं। अब मोदी जी के अक्समात् डीमोनीटाइजेशन के कदम से ऐसे लोगों पर गाज़ गिरी है। देश का पैसा बैंकों में आ रहा है। भ्रष्ट पैसे के अंबार वाले लोग अब इस स्थिति में हैं कि अपने पैसे के ढेर को रद्दी कागज़ की तरह फैंकने पर मजबूर हैं।
सरकार ने अक्सर कहा है कि वह देश को एक कैश–लैस समाज के रूप में बदलना चाहते हैं। ऐसा होने पर सभी पैसों के लेन–देन पारदर्शी होंगे। करोड़ो नए करदाता इनकमटैक्स देने वालों की सूची में शामिल हो जाएंगे। घर पर कैश रखने की आदत शनै–शनै दूर होगी। चुनावों में पैसे से वोट खरीदने की प्रणाली गायब हो जएगी। दोश की प्रगति में भ्रष्टाचार निर्मूलन एक महान योगदान देगा। आपसे, हमसे और देश के आम नागरिकों से यही आशा है कि वे इस महान् कार्य में हाथ बटाएँ। देशवासी और हमारे आम नागरिक इस सत्य को लंबे अरसे से भली भांति महसूस करते थे पर कुछ करने में अपने आप को सक्षम नहीं पाते थे। प्रतीक्षा थी एक ऐसे जाँबाज नेता की जो कि भ्रष्टाचार के शक्तिशाली बैल को सींगों से पकड़ सके और घुमा कर दूर फैंक सके। ऐसा हो रहा है। इसीलिये बैंकों में परेशानियाँ झेलते आम लोग भी मुस्कुरा कर कहते हैं कि कुछ समय की परेशानी तो जरूर है पर देश की प्रगति की खातिर, अपनी भविष्य की पीढ़ी की खातिर, हम खुशी खुशी यह कुछ समय की परेशानी झेलने को तैयार हैं।

एक महान् यज्ञ का आरंभ हो चुका है। ऐसा लगता है कि देश गंगा नहा कर, भ्रष्टाचार के दागों को धो कर पवित्र हो रहा है। समय आगया है कि हम कमर कस कर इस काम में योगदान करने को उठ खड़े हों!
~ राजीव कृष्ण सक्सेना
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