Daughter's naughty kid
बरसों के बाद आज, बिटिया फिर आई हैं, संग प्रवासी अब के, बाबू को लाई हैं, आंखों पर चश्मा है, कॉलर पर टाई है, चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छाई है

बिटिया के बाबू – राजीव कृष्ण सक्सेना

Kids so naughty and trouble makers, grow up to sophisticated adults. Here ia a story of such a a grandchild, and the grandfather (Nana) just wonders if he was the same naughty  kid!!  Rajiv Krishna Saxena 

 

बिटिया के बाबू

कूद फांद करते हैं, सुबह शाम करते हैं 
आजू बाजू के सभी, बच्चों से लड़ते हैं
किसी की नहीं सुनते, बिलकुल बेकाबू हैं
सबसे छोटी वाली, बिटिया के बाबू हैं

छुट्टी में जब भी बिटिया  मैके  आती हैं
दूजे बच्चों के संग बाबू को लाती हैं
बाबू के आते ही हुल्लड़ मच जाते हैं
घर के सब लोगबाग झींके झल्लाते हैं
कभी इधर कभी उधर, बाबू की ठनी है
नानी यह कहती है, "पावों में शनी है"

दौड़ती हुई मुन्नी, हांफती हुई आती
फूले दम जल्दी से, ऐसा कुछ बतलाती
"बंसी की बगिया से, नुक्कड़ की अमराई
गिरिधर की बछिया है,बाबू ने दौड़ाई !”
गिरिधर की मेहरारू, बाहर चिल्लाती है
पीपल पर बाबू को, लठिया दिखाती है

अरसे के बाद जिक्र बाबू का फिर आया सांझ गए घर लौटा, पत्नी ने बतलाया “पीहर से बिटिया का, संदेशा आया है बाबू ने पर्चों में प्रथम स्थान पाया है ! अब तो यह तय है कि छात्रवृत्ति पाएंगे पढ़ने लिखने बाबू, अमरीका जाएंगे” बीता फिर समय एक, गाड़ी के पहिये सा मीलों के पत्थर से, बरस बीतते रहे जाड़ों में मटर और, गर्मी में आमों के रंगों से मौसम, धरा सींचते रहे बरसों के बाद आज, बिटिया फिर आई हैं संग प्रवासी अब के, बाबू को लाई हैं आंखों पर चश्मा है, कॉलर पर टाई है चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छाई है बोलते बहुत कम हैं, थोड़ा सा खाते हैं चुप चुप से रहते हैं, कुछ कुछ मुस्काते हैं बैठक में लोग जमा, हंसी और ठाहाके हैं बाबू से मिल कर घर वाले बतियाते हैं बाहर खड़ा खड़ा मैं, बातें सब सुनता हूं बीते बरसों की कुछ, यादों को गुनता हूं बात नहीं कुछ ऐसी, शंकाएं नहीं हैं दिल फिर भी कहता है, सच , क्या ये वही हैं ? जो . कूद फांद करते थे, सुबह शाम करते थे आजू बाजू के सभी, बच्चों से लड़ते थे किसी की न सुनते थे, बिलकुल बेकाबू थे क्या यही हैं. ? जो सबसे छोटी वाली, बिटिया के बाबू थे !!?
राजीव कृष्ण सक्सेना
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बाल गीता
प्रोफेसर राजीव सक्सेना

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