Tag Archives: Kahin tum panth par aankhen bichhae to nahi baithi

कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं – बालस्वरूप राही

कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं – बालस्वरूप राही

Mere thoughts of love makes a difficult path feel so nice. Here is a lovely poem by Balswarup Rahi – Rajiv Krishna Saxena कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं  कंटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पांव को मेरे‚ कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं! …

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