Tag Archives: Chandrasen Virat

देह के मस्तूल – चंद्रसेन विराट

देह के मस्तूल – चंद्रसेन विराट

Here is a lovely poem of Chandrasen Virat Ji – Rajiv Krishna Saxena देह के मस्तूल अंजुरी–जल में प्रणय की‚ अंर्चना के फूल डूबे ये अमलतासी अंधेरे‚ और कचनारी उजेरे, आयु के ऋतुरंग में सब चाह के अनुकूल डूबे। स्पर्श के संवाद बोले‚ रक्त में तूफान घोले‚ कामना के ज्वार–जल …

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तुम कभी थे सूर्य – चंद्रसेन विराट

तुम कभी थे सूर्य – चंद्रसेन विराट

How fortune changes! Some one on top of the life goes under. Time is a great churner!! Here is a great poem by Chandrasen Virat Ji. Rajiv Krishna Saxena तुम कभी थे सूर्य तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक …

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