A village kachchi road is converted into a black tar-coal modern road. With that the old magic is buried forever. Only memories remain, and nostalgia… Here is an excerpt from a poem by Sarveshwar Dayal Saxena. Rajiv Krishna Saxena
कच्ची सड़क
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
नीम की निबोलियाँ उछालती,
आम के टिकोरे झोरती,
महुआ, इमली और जामुन बीनती
जो तेरी इस पक्की सड़क पर घरघराती
मोटरों और ट्रकों को अँगूठा दिखाती थी,
उलझे धूल भरे केश खोले
तेज धार सरपत की कतारों के बीच
घूमती थी, कतराती थी, खिलखिलाती थी।
टीलों पर चढ़ती थी
नदियों में उतरती थी
झाऊ की पट्टियों में खो जाती थी,
खेतों को काटती थी
पुरवे बाँटती थी
हरी–धकी अमराई में सो जाती थी।
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
गुदना गुदाए, स्वस्थ मांसल पिंडलियाँ थिरकाती
ढोल, मादल, बाँसुरी पर नाचती थी,
पलक झुका गीले केश फैलाए,
रामायण की कथा बाँचती थी,
ठाकुरद्वारे में कीर्तन करती थी,
आरती–सी दिपती थी
चंदन–सी जुड़ती थी
प्रसाद–सी मिलती थी
चरणामृत–सी व्याकुल होंठों से लगकर
रग–रग में व्याप जाती थी।
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
अब वह कहाँ गयी।
किसने कहा उसे पक्की सड़क में बदल दो?
उसकी छाती बेलौस कर दो
स्याह कर दो यह नैसर्गिक छटा
विदेशी तारकोल से।
किसने कहा कि उसके हृदय पर
चोर बाज़ार का सामान ले जाने वाले
भारी भारी ट्रक चलें,
उसके मस्तिष्क में
चमचमाती मोटरों, स्कूटरों की भाग दौड़ हो
किसने कहा
कि वह पाकेटमार–सी मिले
दुर्घटना–सी याद रहे
तीखे विष–सी
ओठों से लगते ही रग–रग में फैल जाए।
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
आह! वह कहाँ गयी।
∼ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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बेहतरीन कविता ,
कविता पढ़ते पढ़ते आदमी अपने अतीत में खो जाता है .
आदमी कितना भी आगे जाये.उसे हर बार पुरानी बातों में सुख नजर अत है . सुख की खोज में आगे निकलता है और असली सुख पीछे छोड़ देता है.कवी को शतशः नमन .