एक कण दे दो न मुझको – अंचल

Here is a prayer from heart to Devta. Oh Lord, you are all-mighty and are able to do anything, Give me too, a tiny morsel of my wish. Rajiv Krishna Saxena

एक कण दे दो न मुझको

तुम गगन–भेदी शिखर हो मैं मरुस्थल का कगारा
फूट पाई पर नहीं मुझमें अभी तक प्राण धारा
जलवती होती दिशाएं पा तुम्हारा ही इशारा
फूट कर रसदान देते सब तुम्हारा पा सहारा

गूँजती जीवन–रसा का एक तृण दे दो न मुझको,
एक कण दे दो न मुझको।

जो नहीं तुमने दिया अब तक मुझे, मैंने सहा सब
प्यास की तपती शिलाओं में जला पर कुछ कहा कब
तृप्ति में आकंठ उमड़ी डूबती थी मृगशिरा जब
आग छाती में दबाए भी रहा मैं देवता! तब

तुम पिपासा की बुझन का एक क्षण दे दो न मुझको,
एक कण दे दो न मुझको।

तुम मुझे देखो न देखो प्रेम की तो बात ही क्या
सांझ की बदली न जब मुझको मिलन की रात ही क्या
दान के तुम सिंधु मुझको हो भला यह ज्ञात ही क्या
दाह में बोले न जो उसको तुम्हें प्रणिपात ही क्या

छाँह की ममता भरी श्यामल शरण दे दो न मुझको,
एक कण दे दो न मुझको।

~ अंचल

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