Here is a touching poem about a daughter. The realized and/or unrealized discrimination between sons and daughter comes in acute focus. –
सयानी बिटिया
जबसे हुई सयानी बिटिया
भूली राजा-रानी बिटिया
बाज़ारों में आते-जाते
होती पानी-पानी बिटिया
जाना तुझे पराये घर को
मत कर यों मनमानी बिटिया
किस घर को अपना घर समझे
जीवन-भर कब जानी बिटिया
चॉकलेट भैया को भाये
पाती है गुड़धानी बिटिया
सारा जीवन इच्छाओं की
देती है कुर्बानी बिटिया
चौका, चूल्हा, झाडू, बर्तन
भूल गई शैतानी बिटिया
हल्दी, बिछूए, कंगल मेंहदी
पाकर हुई बिरानी बिटिया
~ अशोक अंजुम
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