Dream of love
नींद में सपना बन अज्ञात! गुदगुदा जाते हो जब प्राण, ज्ञात होता हँसने का अर्थ तभी तो पाती हूं यह जान

नींद में सपना बन अज्ञात – महादेवी वर्मा

Here is a lovely poem of Mahadevi Verma that you can just flow with. Please read it few times and read it loud, and see its magic! Meanings of some difficult words are given below –Rajiv K. Saxena

नींद में सपना बन अज्ञात

नींद में सपना बन अज्ञात!
गुदगुदा जाते हो जब प्राण,
ज्ञात होता हँसने का अर्थ
तभी तो पाती हूं यह जान,

प्रथम छूकर किरणों की छाँह
मुस्कुरातीं कलियाँ क्यों प्रात,
समीरण का छूकर चल छोर
लोटते क्यों हँस हँस कर पात!

प्रथम जब भर आतीं चुप चाप
मोतियों से आँँखें नादान
आँकती तब आँसू का मोल
तभी तो आ जाता यह ध्यान,

घुमड़ फिर क्यों रोते नव मेघ
रात बरसा जाती क्यों ओस,
पिघल क्यों हिम का उर अवदात
भरा करता सरिता के कोष!

मधुर अपने स्पंदन का राग
मुझे प्रिय जब पड़ता पहिचान!
ढूंढती तब जग में संगीत
प्रथम होता उर में यह भान,

 

वीचियों पर गा करुण विहाग
सुनाता किसको पारावार,
पथिक सा भटका फिरता वात
लिये क्यों स्वरलहरी का भार!

हृदय में खिल कलिका सी चाह
दृगों को जब देती मधुदान,
छलक उठता पुलकों से गात
जान पाता तब मन अनजान,

गगन में हँसता देख मयंक
उमड़ती क्यों जलराशी अपार,
पिघल चलते विधुमणी के प्राण
रश्मियां छूते ही सुकुमार!

देख वारिद की धूमिल छाँह
शिखी शावक होता क्यों भ्रांत,
शलभ कुल नित ज्वाला से खेल
नहीं फिर भी क्यों होता श्रांत!

∼ महादेवी वर्मा

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प्रोफेसर राजीव सक्सेना

 

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