अच्छा अनुभव – भवानी प्रसाद मिश्र

अच्छा अनुभव – भवानी प्रसाद मिश्र

Leaving this world need not be a distressful experience. It is something very natural and has to be accepted that way. Here is a poem with that theme from Bhawani Prasad Mishra. Rajiv Krishna Saxena

अच्छा अनुभव

मेरे बहुत पास
मृत्यु का सुवास
देह पर उस का स्पर्श
मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर मगर प्राणों में
जीवन की लय
तरंगित और उद्दाम
किनारों में काम के बँधा
प्रवाह नाम का

एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज पर
सूरज की लाली

दोनों में धरती पर
छाया घनी और लम्बी
इमारतों की वृक्षों की
देहों की काली

दोनों में कतारें पंछियों की
चुप और चहकती हुई
दोनों में राशीयाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई

दोनों में
एक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए

अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे

अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!

∼ भवानी प्रसाद मिश्र

लिंक्स:

Check Also

बरसों तक बन में घूम घूम

रश्मिरथी (कृष्ण – दुर्योधन संवाद )-रामधारी सिंह दिनकर

As per the original agreement Pandavas were to get back their kingdom when they returned …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *