मेरी थकन उतर जाती है – राम अवतार त्यागी

मेरी थकन उतर जाती है – राम अवतार त्यागी

Here is one of the basic truths of life. Genuine happiness comes only by serving others. Working only for self interests never brings true happiness. This truth is beautifully stated in this poem by Ram Avtar Tyagi Ji. Look specially at last two lines! Rajiv Krishna Saxena

मेरी थकन उतर जाती है

हारे थके मुसाफिर के चरणों को धोकर पी लेने से
मैंने अक्सर यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है।

कोई ठोकर लगी अचानक
जब-जब चला सावधानी से,
पर बेहोशी में मंजिल तक
जा पहुँचा हूँ आसानी से;
रोने वाले के अधरों पर अपनी मुरली धर देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी तृष्णा मर जाती है।

प्यासे अधरों के बिन परसे
पुण्य नहीं मिलता पानी को,
याचक का आशीष लिये बिन
स्वर्ग नहीं मिलता दानी को;
खाली पात्र किसी का अपनी प्यास बुझा कर भर देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी गागर भर जाती है।

लालच दिया मुक्ति का जिसने
वह ईश्वर पूजना नहीं है,
बन कर वेदमंत्र-सा मुझको
मंदिर में गूँजना नहीं है;
संकटग्रस्त किसी नाविक को निज पतवार थमा देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी नौका तर जाती है।

∼ राम अवतार त्यागी

लिंक्स:

Check Also

Maharana Pratap

प्रताप की प्रतिज्ञा – श्याम नारायण पांडेय

Mansingh, a Rajput, ( “Maan” in first line of third stanza) had aligned with Emperor …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *