जीवन कट गया – गोपाल दास नीरज

A life ends, just like millions of lives end. Nothing very important from a wider perspective. One can analyze all one wants, but the basic fact remains that one life ended just as millions do. A lovely poem by Neeraj. Rajiv Krishna Saxena

जीवन कट गया

जीवन कटना था, कट गया
अच्छा कटा, बुरा कटा
यह तुम जानो
मैं तो यह समझता हूँ
कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया
जीवन कटना था कट गया।

रीता है क्या कुछ
बीता है क्या कुछ
यह हिसाब तुम करो
मैं तो यह कहता हूँ
परदा भरम का जो हटना था, हट गया
जीवन कटना था कट गया।

क्या होगा चुकने के बाद
बूँद-बूँद रिसने के बाद
यह चिंता तुम करो
मैं तो यह कहता हूँ
कर्जा जो मिटटी का पटना था, पट गया
जीवन कटना था कट गया।

बँधा हूँ कि खुला हूँ
मैला हूँ कि धुला हूँ
यह विचार तुम करो
मैं तो यह सुनता हूँ
घट-घट का अंतर जो घटना था, घट गया
जीवन कटना था कट गया।

∼ गोपाल दास नीरज

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