हर घट से – गोपाल दास नीरज

हर घट से – गोपाल दास नीरज

This is a famous poem of Niraj. One has to be selective in life, put in sustained efforts and be patient in order to succeed. Rajiv Krishna Saxena

हर घट से

हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे!
प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है!

हैं बरन बरन के फूल धूल की बगिया में
लेकिन सब ही आते पूजा के काम नहीं,
कुछ में शोखी है, कुछ में केवल रूप रंग
कुछ हँसते सुबह मगर मुस्काते शाम नहीं,
दुनिया है एक नुमाइश सीरत–सूरत की
हर सुन्दर शीशे को मत अश्रु दिखा अपने,
सौन्दर्य न अपनाता केवल मुस्काता है!

पपिहे पर वज्र गिरे फिर भी उसने अपनी
पीड़ा को किसी दूसरे जल से नहीं कहा,
लग गया चाँद को दाग़, मगर अब तक निशि का
आँगन तज कर वह और न जा कर कहीं रहा,

हर एक यहाँ है अडिग–अचल अपने प्रण पर
फिर तू ही क्यों भटका फिरता है इधर–उधर,
मत बदल–बदल कर राह सफ़र तय कर अपना
हर पथ मंजिल की दूरी नहीं घटाता है!

दीपक ने जलन दिखा डाली सबको अपनी
इस कारण अब तक उसका जलना बंद नहीं,
है भटक रहा भँवरा बन–बन बस इसीलिये
है एक फूल का चुंबन उसे पसंद नहीं,
है प्यार स्वतंत्र, मगर है कहीं नियंत्रण भी
ज्यों छंद कहीं है मुक्ति, कहीं है बन्धन भी,
हर देहरी मत अपनी भक्ति चढ़ा पागल
मंदिर का तो बस पाषाणों से नाता है!

∼ गोपाल दास नीरज

लिंक्स:

Check Also

सखी वे मुझ से कह कर जाते – मैथिली शरण गुप्त

The relationship between a husband and wife is based on total faith. A girl leaves …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *