कल और आज – नागार्जुन

This beautiful poem by Nagarjuna depicts the stark contrast before and after the onset of rains. There is no doubt, in the Northern Indian planes, rains bring in a new lease of life for Nature and human beings alike.  Rajiv K. Saxena

कल और आज

अभी कल तक
गालियां देते थे तुम्हें
हताश खेतिहर,

अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गौरैयों के झुंड,

अभी कल तक
पथराई हुई थी
धनहर खेतों की माटी,

अभी कल तक
दुबके पड़े थे मेंढक,
उदास बदतंग था आसमान!

और आज
ऊपर ही ऊपर तन गए हैं
तुम्हारे तंबू,

और आज
छमका रही है पावस रानी
बूंदा बूंदियों की अपनी पायल,

और आज
चालू हो गई है
झींगुरों  की शहनाई अविराम,

और आज
जोर से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,

और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,

और आज
विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेट कर अपने लव लश्कर।

~ नागार्जुन

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