Didi ke dhool bhare paon
दीदी के धूल भरे पाँव, बरसों के बाद आज, फिर यह मन लौटा है क्यों अपने गाँव

दीदी के धूल भरे पाँव – धर्मवीर भारती

A lovely poem of Dr. Draramvir Bharti depicting the nostalgia  associated with village home that was left long ago. Rajiv Krishna Saxena

दीदी के धूल भरे पाँव

दीदी के धूल भरे पाँव
बरसों के बाद आज
फिर यह मन लौटा है क्यों अपने गाँव;

अगहन की कोहरीली भोर:
हाय कहीं अब तक क्यों
दूख दूख जाती है मन की कोर!

एक लाख मोती, दो लाख जवाहर
वाला, यह झिलमिल करता महानगर
होते ही शाम कहाँ जाने बुझ जाता है-
उग आता है मन में
जाने कब का छूटा एक पुराना गँवई का कच्चा घर

जब जीवन में केवल इतना ही सच था:
कोकाबेली की लड़, इमली की छाँव

∼ धर्मवीर भारती

लिंक्स:

 

Check Also

It is not possible to forget you love!

तुझे कैसे भूल जाऊं – दुष्यंत कुमार

You have reached the peak of career and life is taking you places. You have …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *