तुमको रुप का अभिमान – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

तुमको रुप का अभिमान – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

A woman is proud of her beauty but her lover is proud of his love and dedication to her. She is like the full moon but his feelings are like the perturbation in deep sea. This poem compares the two. Rajiv Krishna Saxena

तुमको रुप का अभिमान

तुमको रुप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!

तुम हो पूर्णिमा साकार,
मैं हूँ सिंधु–उर का ज्वार!
दोनो का सनातन मान,
दोनो का सनातन प्यार!
तुम आकाश, मैं पाताल,
तुम खुशहाल, मैं बेहाल;
तुमको चाँदनी का गर्व,
मुझको ज्वार का अभिमान!

तुमको रुप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!

मुझको तो नहीं मालूम
किस दिन बँध गए थे प्राण,
कैसे हो गई पहचान,
तुम अनजान, मैं अनजान?

तुम संगीत की रसधार,
मैं हूँ दर्द का भण्डार;
वीणा को कहाँ मालूम
टूटे तार का अभिमान!

तुमको रुप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!

मिट्टी मे मिलें चुपचाप,
फूलों की यही तक़दीर!
पहने आँसुओं के हार
भूलों की यही तक़दीर!
तुमको होश, मैं बेहोश,
तुम निर्दोष, मेरा दोष,
जानेगा मरण का सिन्धु
जीवन–धार का अभिमान!

तुमको रुप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!

∼ रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

लिंक्स:

 

Check Also

First futile attemp at finding love!

पहली कोशिश – राज नारायण बिसारिया

This poem belongs to an era of 1950s. Boys and girls did not meet freely …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *