तुम निश्चिन्त रहना – किशन सरोज

तुम निश्चिन्त रहना – किशन सरोज

A broken heart is so painful. Heart mourns it like a death and the person feels totally crushed. All those things that were of utmost importance till recently, must now be buried… Here is a lovely poem by Kishan Saroj. I especially like the first two lines of the last stanza that say that all those memories of things done together would have to be erased. Rajiv Krishna Saxena

तुम निश्चिन्त रहना

कर दिये लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र‚ सारे चित्र
तुम निश्चिन्त रहना।

धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनुष
छू गये नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
वह नदी होगी नहीं अपवित्र
तुम निश्चिन्त रहना।

दूर हूं तुमसे न अब बातें उठें
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर‚ वे राजपथ‚ वे चौक–गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र
तुम निश्चिन्त रहना।

लो विसर्जन आज वासंती छुअन का
साथ बीने सीप–शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाये कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोरपंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक एक चरित्र
तुम निश्चिन्त रहना।

∼ किशन सरोज

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