जब नींद नहीं आती होगी – रामेश्वर शुक्ल अंचल

जब नींद नहीं आती होगी – रामेश्वर शुक्ल अंचल

Trying to suppress memories of lost love, while trying to adopt to a new pattern of life, should be very difficult. This poem describes the feeling. The internal turmoil simply would not let the sleep to take over. Rajiv Krishna Saxena

जब नींद नहीं आती होगी

क्या तुम भी सुधि से थके प्राण
ले– लेकर अकुलाती होगी,
जब नींद नहीं आती होगी!

दिन भर के कार्य भार से थक–
जाता होगा जूही–सा तन,
श्रम से कुम्हला जाता होगा
मृदु कोकाबेली–सा आनन।
लेकर तन– मन की श्रांति पड़ी–
होगी जब शय्या पर चंचल,
किस मर्म वेदना से क्रंदन
करता होगा प्रति रोम विकल,
आँखों  के अम्बर से धीरे – से
ओस ढुलक जाती होगी,
जब नींद नहीं आती होगी!

जैसे घर में दीपक न जले
ले वैसा अंधकार तन में,
अमराई में बोले न पिकी
ले वैसा सुनापन मन में,
साथी की डूब रही नौका
जो खड़ा देखता हो तट पर,
उसकी–सी लिये विवशता तुम
रह– रह जलती होगी कातर
तुम जाग रही होगी पर जैसे
दुनिया सो जाती होगी,
जब नींद नहीं आती होगी!

हो छलक उठी निर्जन में काली
रात अवश ज्यों अनजाने,
छाया होगा वैसा ही
भयकारी उजड़ापन सिरहाने,
जीवन का सपना टूट गया
छूटा अरमानों का सहचर,
अब शेष नहीं होगी प्राणों की
क्षुब्द रुलाई जीवन भर,
क्यों सोच यही तुम चिंताकुल
अपने से भय खाती होगी?
जब नींद नहीं आती होगी!

~ रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

लिंक्स:

 

Check Also

Lajili Raat Ayi hai

लजीली रात आई है – चिरंजीत

Most of our lives are hum-drum. There are few moments of elation and stretches of …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *