पुत्र वधू से – प्रतिभा सक्सेना

पुत्र वधू से – प्रतिभा सक्सेना

A new bride comes home. Mother of the groom welcomes her. Pratibha Ji has so beautifully captured her thoughts. Somehow, these rituals, thousands of years old as they may be, never fail to stir the heart and emotions even today. Rajiv Krishna Saxena

पुत्र वधू से

द्वार खड़ा हरसिंगार फूल बरसाता है
तुम्हारे स्वागत में,
पधारो प्रिय पुत्र- वधू।

ममता की भेंट लिए खड़ी हूँ कब से,
सुनने को तुम्हारे मृदु पगों की रुनझुन!
सुहाग रचे चरण तुम्हारे, ओ कुल-लक्ष्मी,
आएँगे चह देहरी पार कर सदा निवास करने यहाँ,
श्री-सुख-समृद्धि बिखेरते हुए।

अब तक जो मैं थी, तुम हो,
जो कुछ मेरा है तुम्हें अर्पित!
ग्रहण करो आँचल पसार कर, प्रिय वधू,
समय के झंझावातों से बचा लाई हूं जो,
अपने आँचल की ओट दे,
सौंपती हूँ तुम्हें–
उजाले की परंपरा!
ले जाना है तुम्हें
और उज्ज्वल, और प्रखर, और ज्योतिर्मय बना कर
कि बाट जोहती हैं अगली पीढियाँ।

मेरी प्रिय वधू, आओ
तुम्हारे सिन्दूर की छाया से
अपना यह संसार और अनुरागमय हो उठे।

∼ प्रतिभा सक्सेना

लिंक्स:

 

Check Also

Dancing of ocean waves

सागर के उर पर नाच नाच – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

Here is a lovely poem that is a great fun just to recite. It is …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *