हम तो मस्त फ़क़ीर – गोपाल दास नीरज

हम तो मस्त फ़क़ीर – गोपाल दास नीरज

Life is a temporary phase. We come into this world and leave one day. In between, many get too pre-occupied with hording wealth and name. Indian thought has always considered this tendency madness. Detachment with material things and love for humanity has always been the saintly advice in India. Here is reinforcement of this thought by Neeraj. Rajiv Krishna Saxena

हम तो मस्त फ़क़ीर

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।
जैसे अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।

राम घाट पर सुबह गुजारी
प्रेम घाट पर रात कटी
बिना छावनी बिना छपरिया
अपनी हर बरसात कटी
देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा
कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे।

औरों का धन सोना चांदी
अपना धन तो प्यार रहा
दिल से जो दिल का होता है
वो अपना व्यापार रहा
हानि लाभ की वो सोचें, जिनकी मंजिल धन दौलत हो!
हमें सुबह की ओस सरीखा लगा नफा नुकसाना रे।

कांटे फूल मिले जितने भी
स्वीकारे पूरे मन से
मान और अपमान हमें सब
दौर लगे पागलपन के
कौन गरीबा कौन अमीरा हमने सोचा नहीं कभी
सबका एक ठिकान लेकिन अलग अलग है जाना रे।

सबसे पीछे रहकर भी हम
सबसे आगे रहे सदा
बड़े बड़े आघात समय के
बड़े मजे से सहे सदा!
दुनियाँ की चालों से बिल्कुल, उलटी अपनी चाल रही
जो सबका सिरहाना है रे! वो अपना पैताना रे!

∼ गोपाल दास नीरज

लिंक्स:

 

Check Also

Bride leaving after the marriage ceremony. Vidaai

विदा की घड़ी है – राजनारायण बिसरिया

A village bride is ready to leave parent’s home. A very poignant movement… Rajnarain Bisaria …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *