दीप मेरे जल अकम्पित (दीपशिखा) – महादेवी वर्मा

दीप मेरे जल अकम्पित (दीपशिखा) – महादेवी वर्मा

Here is another famous poem by Mahadevi Ji. I love the first lines “clouds are the breath of ocean and lightening the restless thoughts of darkness” – Rajiv Krishna Saxena

दीप मेरे जल अकम्पित

दीप मेरे जल अकम्पित,
घुल अचंचल।
सिन्धु का उच्छवास घन है,
तड़ित, तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल।
स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,
मीड़, सब भू की शिरायें,
गा रहे आंधी-प्रलय
तेरे लिये ही आज मंगल

मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल।

पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सबकी छाँह उज्ज्वल

हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल।

धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या।
प्रात हंस रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल।
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अंचल।

∼ महादेवी वर्मा

लिंक्स:

Check Also

We watch the river and wonder what will be there on the other side!

उस पार न जाने क्या होगा – हरिवंश राय बच्चन

This is a very famous poem of Harivansh Rai Bachchan. We know nothing about where …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *