चांद पर मानव - काका हाथरसी

चांद पर मानव – काका हाथरसी

This poem was written by Kaka Hathrasi, when man had for the first time reached on moon. Big deal! Many thought. Rajiv Krishna Saxena

चांद पर मानव

ठाकुर ठर्रा सिंह से बोले आलमगीर
पहुँच गये वो चाँद पर, मार लिया क्या तीर
मार लिया क्या तीर, लौट पृथ्वी पर आये
किये करोड़ों खर्च, कंकड़ी मिट्टी लाये
‘काका’, इससे लाख गुना अच्छा नेता का धंधा
बिना चाँद पर चढ़े, हजम कर जाता चंदा

पहुँच गए जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंग
शायर कवियों की हुई काव्य कल्पना ‘रोंग’
काव्य कल्पना ‘रोंग’, सुधाकर हमने जाने
कंकड़ पत्थर मिले, दूर के ढोल सुहाने
कह काका कविराय, खबर यह जिस दिन आई
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई

पार्वती कहने लगीं, सुनिए भोलेनाथ
अब अच्छा लगता नहीं ‘चन्द्र’ आपके माथ
‘चन्द्र’ आपके माथ, दया हमको आती है
बुद्धि आपकी तभी ‘ठस्स’ होती जाती है
धन्य अपोलो तुमने पोल खोल कर रख दी
काकीजी ने ‘करवाचौथ’ कैंसिल कर दी

वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान
प्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं इंसान
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका
कहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो काका
अगर वहाँ मानव रहते, हम चुप रह जाते
अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आते

~ काका हाथरसी

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2 comments

  1. kaka hathrasi well known satire and comic poetry writer. His very poem is full of laughter and life. Excellent

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