असमर्थता – राजेंद्र पासवान ‘घायल’

There are so many things that we would like to do or say in life, but are unable to do. Here is a nice poem by Rajendra Paswan ‘Ghayal’. Rajiv Krishna Saxena

असमर्थता

ख्यालों में बिना खोये हुए हम रह नहीं पाते
मगर जो है ख्यालों में उसे भी कह नहीं पाते

हज़ारों ज़ख्म खाकर भी किसी से कुछ नहीं कहते
किसी की बेरुख़ी लेकिन कभी हम सह नहीं पाते

हमारे मुस्कुराने पर बहुत पाबन्दियाँ तो हैं
मगर पाबन्दियों में हम कभी भी रह नहीं पाते

किसी के हाथ का पत्थर हमारी ओर आता है
मगर हम हैं कि उस पत्थर को पत्थर कह नहीं पाते

भरी महफ़िल में अक्सर हम बहुत ख़ामोश रहते हैं
हमारे नैन लेकिन कुछ कहे बिन रह नहीं पाते

किसी की याद में खोना इबादत है नहीं तो क्या
इबादत हम भी करते हैं मगर हम कह नहीं पाते

वफ़ा की राह में ‘घायल’ कभी तूफ़ां भी आता है
इमारत की तरह लेकिन कभी हम ढह नहीं पाते

∼ राजेंद्र पासवान ‘घायल’

लिंक्स:

Check Also

Bride leaving after the marriage ceremony. Vidaai

विदा की घड़ी है – राजनारायण बिसरिया

A village bride is ready to leave parent’s home. A very poignant movement… Rajnarain Bisaria …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *