सपनों का अंत नहीं होता – शिव बहादुर सिंह भदौरिया

सपनों का अंत नहीं होता – शिव बहादुर सिंह भदौरिया

There are some basic facts of life that do not change. We may try to hide or overlook those facts and live in a dream world of our own, but the reality dawns sooner or later. Read this beautiful poem by Shiv Bahadur Singh Ji. Rajiv Krishna Saxena

सपनों का अंत नहीं होता

सपने जीते हैं मरते हैं
सपनों का अंत नहीं होता।

बाँहों में कंचन तन घेरे
आँखों–आँखों मन को हेरे
या फिर सितार के तारों पर
बेचैन उँगलियों को फेरे–
बिन आँसू से आँचल भीगे
कोई रसवंत नहीं होता।

सोने से हिलते दाँत मढ़ें
या कामसूत्र के मंत्र पढ़ें
चाहे खिजाब के बलबूते
काले केशों का भरम गढ़ें–
जो रोके वय की गतिविधियाँ
ऐसा बलवंत नहीं होता।

साधू भी कहाँ अकेले हैं
परिवार नहीं तो चेले हैं
एकांतों के चलचित्रों से
यादों के बड़े झमेले हैं–
जिसमानी मन के मरे बिना
कोई भी संत नहीं होता।

~ शिव बहादुर सिंह भदौरिया

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