Finding meanings of poems
तुमनें मुझे अदेखा कर के, संबंधों की बात खोल दी, सुख के सूरज की आंखों में, काली काली रात घोल दी

कविता का अर्थ – राजीव कृष्ण सक्सेना

Geeta-Kavita site is becoming popular and its readership is growing fast. I feel happy at this interest of Hindi readers, which certainly motivates me to find even more poems for the readers. Running this site has been a unique experience for me. Many readers at times ask me the meanings of certain poems and I explain to the extent I can. I generally select those poems for Geeta-Kavita whose meanings or at least impressions may not be beyond the comprehension of a large proportion of todays readers of Hindi poetry. There are two basic reasons why readers may find it difficult to understand some poems. Firstly, thanks to the poor Hindi education in our schools these days, Hindi vocabulary of many readers is not what it should be. In addition, some contemporary Hindi poems may be too complex reflecting the intricate and enigmatic thought process of todays poets. This short article is meant to provide some thoughts on this issue. Readers comments are welcome at rajivksaxena@gmail.com – Rajiv Krishna Saxena

कविता का अर्थ

 

मुझे अक्सर पाठकों के पत्र मिलते हैं जिनमे वे मुझसे किसी कविता विशेष के अर्थ पूछते हैं। मैं अपनी समझ के अनुसार अर्थ बताने ही कोशिश करता हूं। पर क्या कविता का अर्थ यथार्थ में बताया जा सकता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि कविता किस प्रकार की है। कुछ कविताएं बिलकुल साफ होती हैं और उन्हें सभी समझ सकते हैं और उनका रसपान कर सकते हैं। जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता “झांसी की रानी” या श्याम नारायण पांडेय की कविता “हल्दीघाटी”। इन कवितााओं के विषय ऐसे हैं कि आपको कवि का अभिप्राय समझने में तनिक भी कठिनाई नहीं होती। उदाहरण के तौर पर हल्दीघाटी में श्याम नारायण जी कहते हैं

राणा का ओज भरा आनन‚ सूरज समान जगमगा उठा
बन महाकाल का महाकाल‚ भीषण भाला दमदमा उठा

इसमे अगर आप को आनन का अर्थ मुख या चेहरा पता हो‚ महाकाल का अर्थ मृत्यु और दमदमा का मतलब दम या शक्ति से परिपूर्ण होना पता हो‚ तो फिर अर्थ बिल्कुल साफ है। ऐसी कविताओं में अगर शब्दों का अर्थ पता हो तो कविता पूर्णतः समझ आ जाती है। आजकल हिंदी के कई कठिन शब्द साधारण पाठकों की जानकारी से बाहर हो सकते हैं। इसलिये कुछ कविताओं में मैं कठिन शब्दों के अर्थ भी दे देता हूं। कविता पढ़ने से भाषा सुधरती है। अगर आप हिंदी कविता प्रेमी हैं तो एक हिंदी शब्दकोष अवश्य खरीद लें । इससे बड़ी मदद मिलेगी। इन्टरनैट पर भी कुछ अच्छी ऑनलाइन हिन्दी शब्दकोश उपलब्ध हैं जिनसे आप लाभ उठा सकते हैं। जैसे कि इस लेख के अंत में दिये दो लिंक।

 

कविता का स्वरूप समय के साथ बदला है।मैंने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था नई दुनियां‚ पुरानी दुनियां। अगर आप सहित्य और कला के क्षेत्रों में हाल में ही आए बदलावों को समझना चाहें तो यह लेख आप अवश्य पढ़ें। पिछली शताब्दी में हिंदी कवि की अभिव्यक्तियों में बहुत परिवर्तन आया है। यह परिवर्तन हिंदी के साहित्य में ही नहीं मगर विश्व की लगभग सभी भाषाओं के सहित्य में भी देखने को मिलता है। पुनः ऐसे परिवर्तन सहित्य मे ही नहीं पर कला के हर क्षेत्र में भी आए हैं और लगातार आ रहे हैं। कविताएं हर भाषा में जटिल होती जा रही हैं और कई बार पाठकों की समझ से बाहर भी। मेरी समझ में यह परिवर्तन स्वभाविक है और इसका मूल कारण मानव के अपने व्यक्तित्व का खुल कर सामने आना है। इसका कुछ खुलासा आवश्यक है। कुछ समय पहले तक समाज का हर व्यक्ति अपनेआप को समाज के एक अभिन्न अंग के रूप में देखता था और उसका अपना व्यक्तित्व दबा रहता था। पिछली कुछ शताब्दियों में धीरे धीरे मानव का निजी व्यक्तित्व समाज की जकड़ से बाहर आ रहा है और आज का आधुनिक व्यक्ति अपने आप को एक समाज से अलग थलग एक स्वाधीन इकाई के रूप में देख सकता है जो कि पुराने युग में संभव नहीं था। कवि के व्यक्तित्व में और उसकी काव्य अभिव्यक्ति में भी यह बदलाव साफतौर से झलकता है। पहले का कवि सामाजिक चेतनानुसार लिखता था और इसीलिये उसकी बात बाकी का समाज बाखूबी समझता था। कविताएं या तो प्रभु का गुण गान होतीं थीं‚ या किसी तरह के जीवन उपदेश‚ समाज व्यवस्था या फिर राजा माहराजाओं के कारनामों के विवरण। तुलसीदास का रामचरितमानस‚ कबीर के दोहों और मीरा या सूरदास के भजनों से ले कर श्यामनारायण पांडेय की हल्दीघाटी‚ और मैथिली शरण गुप्त की भारत भारती तक सभी काव्य अभिव्यक्तियां इसी सामाजिक युग की कविता के रूप माने जा सकते हैं। समाज नें इन कविताओं को पूर्णतः समझा और सराहा। इस युग की कविताएं छंद बद्ध रहीं और क्योंकि छंद मानव मस्तिष्क पर छप जाता है यह कविताएं जनता के दिलोदिमाग पर छा गईं। इन्हें बच्चों ने रटा और बूढ़ा होने तक याद रखा।आम जनता आज भी इन कविताओं को प्यार करती है और सराहती है।

पूरे विश्व में पिछली कुछ शताब्दियों से मानव व्यक्तित्व समाज की जकड़ से बाहर आया है। पश्चिमी देशों में यह कई शताब्दियों से हो रहा है पर भारत में यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत नई है। समझिये लगभग एक शताब्दि पहले से। इस बदलाव के परिणाम स्वरूप कवियों ने अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियां कविता में संजोना प्र्रारंभ किया। जनता को जब इन कविताओं में अपने आप की भावनाओं को मुखरित होते देखा तो उन्हें यह कविताएं भी भाने लगीं। उदाहरण के तौर पर हरिवंश राए बच्चन की कविता “इस पार प्रिये तुम हो मधु है‚ उस पार न जाने क्या होगा”. को लीजिये। मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा यह सभी सोचते हैं और इस कविता में उसकी अभिव्यक्ति मिली। इसी तरह जीवन में कुछ ठोस न कर पाने की व्यक्तिगत निराशा नीरज की कविता “कारवां गुजर गया‚ गुबार देखते रहे” में प्रगट हुई और इसने आम जनता को मोह लिया। षह पंक्तियां देखिये :

हो सका न कुछ मगर‚ सांझ बन गई सहर
वह उठी लहर कि डह गये किले बिखर–बिखर
और हम डरे–डरे‚ नीर नैन में भरे
ओढ़ कर कफन पड़े‚ मजार देखते रहे
कारवां गुजर गया‚ गुबार देखते रहे।

 

इस तरह की कविताएं पुराने सामाजिक युग की कविताओं से एक कदम आगे निकलीं क्योंकि इनमे व्यक्तिगत सोच की अभिव्यक्ति का आरंभ हुआ। इसके आगे कुछ और ज्यादा जटिल व्यक्तिगत अभिव्यक्तियां कवितााओं के रूप में आगे आईं। उदाहरण के तौर पर महादेवी वर्मा की कविता “नींद में सपना बन अज्ञात”‚ भवानी प्रसाद गुप्त की कविता “टूटने का सुख”‚ धर्मवीर भारती की “क्योंकि है सपना अभी भी”‚ और राम अवतार त्यागी की कविता “सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे” को देखें। यह सभी जटिल व्यक्तिगत अनुभूतियों को कविता के रूप में प्रस्तुत करने के बड़े सफल उदाहरण हैं। पर मैंने यह देखा है कि सधारण जनता इस स्तर की जटिलता भी अक्सर नहीं समझ पाती जब की चिंताशील व्यक्तियों या बुद्धिजीवियों के लिये इन्हें समझना आसान होता है। इस कोटि की कविताओं का अर्थ एक ही नहीं हो सकता। अलग अलग व्यक्ति अपने अनुभव और सोच के अनुसार एक ही कविता का आलग अलग अर्थ लगा सकते हैं यह इन कविताओं की खूबी है।एक उदाहरण लेते हैं। राम अवतार त्यागी की कविता “सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे” से यह अंश देखिये :

आने पर मेरे बिजली–सी कौंधी सर्फ तुम्हारे दृग में
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं राओगे!

तुमनें मुझे अदेखा कर के
संबंधों की बात खोल दी
सुख के सूरज की आंखों में–
काली काली रात घोल दी

कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत–
लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे!

विभिन्न चिंतनशील पाठक इस अंश का एक ही अर्थ नहीं करेंगे यद्यपि मूल भावना सभी को समझ आजाएगी। इसके विपरीत अपेक्षाकृत पुराने युग की कविताओं का अर्थ लगभग सभी को एक समान सा प्रतीत होगा।

 

आधुनिक यग में और भी अधिक जटिल कविताएं लिखी जारही हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि ज्यों ज्यों हमारा जीवन पुरातन सरलता से नई ज्टिलता को अपना रहा है व्यक्तिगत अनुभूतियां भी अपेक्षाकृत अधिक जटिल हो रही हैं और नई कविताएं यही अभिव्यक्त कर रही हैं। कठिनाई यह है कि अधिकतर पाठक इन नवीनतम जटिल कविताओं को समझने में असमर्थ है। ऐसी कविताओं के उदाहरण अभी तक गीता कविता साइट पर उपलब्ध नहीं हैं पर आप इस कोटि में गजानन मुक्तिबोध या अज्ञेय की कई कविताओं को मान सकते हैं। अज्ञोय जी ने स्वयं ही अपनी प्रसिद्ध पुस्तकमाला तार सप्तक मे लिखा है कि एक बार जब उनकी कविता “जैसे तुझे स्वीकार हो” छपी तो एक पत्रकार ने उसका अर्थ करने वाले के लिये पुरस्कार की घोषणा कर डाली। इस कविता का आरंभ यह हैः

जैसे तुझे स्वीकार हो!
डोलती डाली‚ प्रकंपित पात‚ पाटल स्तंभ विलुलित
खिल गया है सुमन मृदु–दल‚ बिखरते किंजल्क प्रमुदित
स्नात मधु से अंग रंजित–राग केशर अंजली से
स्तब्ध सौरभ है निवेदित‚
मलय मारुत और अब जैसा तुझे स्वीकार हो।

अज्ञेय जी नें स्वयं ही छद्नाम से इस कविता का अर्थ एक काव्यानुवाद के रूप में संपादक को भेजा. जो कि छपा तो सही पर पुरुस्कार न पा सका! सच तो यह है कि आम जनता की समझ सम सामायिक विचारकों और कवियों से कई दशक पीछे चलती है। आगे चल कर यह नई कविताएं भी जनता समझेगी और पसंद करेगी ऐसा लगता है।

यह लेख मैंने एक एख्सपर्ट के नाते नहीं लिखा क्यों कि मैं मूलतः एक वैज्ञानिक हूं और निश्चित ही हिंदी कविता का एक्सपर्ट नहीं हूं। मैं यह लेख एक सजग हिंदी कविता के पाठक के रूप में ही लिख रहा हूं। आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है।

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

लिंक्स:

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9 comments

  1. रितेश जैन

    आलेख बहुत अच्छा है।
    क्या पंतजी और बच्चनजी की कविताओ के अर्थ भी नेट पर प्राप्त हो सकते है?

  2. प्रेम वर्मा

    नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति।
    बिच-बिच छहरति बूँद मध्य मुक्ता मनि पोहति

  3. Mai dundta tujhe tha….Kavita Ka arth Hindi m BTA skte hai .

  4. Hindustan hmaara hai..kvita ka arth btayenge

  5. Niceeeeee.aap logo me karan hum log parh pate h.

  6. श्रीमान
    ehi ehi veer re virtam vidhi re……
    kavita ka hindi arth de धन्यवाद

  7. पहली बार इस साइट पे आया और इस लेख को पढ़ा, बहुत अच्छा लगा

  8. क्या आप को इसका सही व्याख्या मिला

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