इंडोनेशिया की यात्रा

इंडोनेशिया की यात्रा: राजीव कृष्ण सक्सेना

Introduction

I recently had the opportunity of visiting Indonesia. Amongst Indians, Indonesia is not too popular a tourist destination. Yet surprising affinity of Indonesian culture with Indian culture and the 1500 years of rule of Hindu and Buddh kingdoms till 1500AD are some things that Indian tourists would certainly enjoy seeing and learning more about. Country is not too expensive and would in due course of time be an attractive tourist destination for Indian tourists also. ~ Rajiv Krishna Saxena

इंडोनेशिया की यात्रा

इंडोनेशिया भारत के दक्षिण पूर्व में एक बड़ा देश है जो कि एक ऐसा द्वीप समूह है जिसमें लगभग 13000 छोटे बड़े द्वीप हैं। यहाँ की जनसंख्या करीब 25 करोड़ है ह्यभारत 125 करोड़हृ और आबादी के अनुसार यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश है ह्यभारत दूसराहृ। इतना बड़ा देश होते हुए भी एक आम भारतीय नागरिक को इंडोनेशिया के बारे में कुछ खास पता नहीं होता। राजधानी जकार्ता का नाम कुछ लोग जानते हैं पर इंडोनेशिया के दूसरे बड़े और महत्वपूर्ण शहरों जैसे कि सुराबया या जोगजकार्ता को हम नहीं जानते। बाली जो कि इंडोनेशिया का एक बड़ा द्वीप है और एक बड़ा पर्यटन का केंद्र है उसका नाम अवश्य कई लोग जानते हैं और बहुत से नवविवाहित भारतीय युगल वहाँ हनीमून के लिये भी जाते हैं।

अभी हाल में ही मुझे इस देश की यात्रा का मौका मिला। मेरा बेटा जो कि पिछले दो वर्षों से इंडोनेशिया के दूसरे सबसे बड़े शहर सुराबया में कार्यरत है, उसके निमंत्रण पर हम इंडोनेशिया गए। अचरज की बात है कि भारत और इंडोनेशिया जैसे दो बड़े देशों के बीच कोई भी सीधी हवाई सेवा नहीं है। हम दिल्ली से कुआलालंपुर ह्यमलेशियाहृ और वहाँ से सुराबया पहुँचे और इस हवाई यात्रा में लगभग दस घंटे लगे।सुराबया एक सफसुथरा और हरा भरा आधुनिक शहर है जोकि समुद्र किनारे बसा है। बारिश बहुत होती है और हवाई जहाज़ से ही दूर दूर फैले धान के हरे भरे खेत दिखाई पड़ते हैं। इंडोनेशिया की भाषा को अब “भासा इंडोनेशिया” कहते हैं। लगभग सौ साल पहले तक इंडोनेशिया एवं पड़ोसी मलेशिया में तरह–तरह की मिलती जुलती भाषाएँ होती थीं और इनको लिखने के लिये तरह–तरह की ल्पिियाँ प्रयोग में लई जातीं थीं।इनमें एक प्रमुख दक्षिण भारतीय लिपि “पल्लवी” भी थी। इंडोनेशिया अरसे तक एक डच उपनिवेश रहा है। जैसे कि भारत पर लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का राज्य रहा वैसे ही इंडोनेशिया पर डच ह्यनीदरलैंडहृ शासन रहा जिसके कारण इस देश में डच प्रभाव बहुत दिखाई देता है। 1928 में भासा इंडोनेशिया के लिये रोमन ल्पिि का प्रयोग आधिकारिक रूप में शुरू किया गया। सड़कों पर सभी सइन बोर्ड रोमन लिपि में होते हैं और सभी अखबार आदि रोमन लिपि में लिखी भाषा इंडोनेशिया में होते हैं।

सुराबया एयरपोर्ट से बाहर आने पर हमने देखा कि कई बातें या शब्द भासा इंडोनेशिया में संस्कृत से मिलते जुलते हैं। जैसे कि एक बड़े साइनबोर्ड पर रोमन लिपि में लिखा था “दीर्घआयु इंडोनेशिया”। भारतीय संस्कृति का प्रभाव इंडोनेशिया मे हर कदम पर दिखाई देता है। भासा इंडोनेशिया में सैकड़ो शब्द संस्कृत के हैं। जैसे कि पति पत्नी के लिये “स्त्री स्वामी” का प्रयोग होता है। इसका कारण है कि करीब पहली शताब्दी से पंद्रहवीं शताब्दी यानि कि 1500 सालों तक यहां हिंदू और बौद्ध राजाओं का शासन था जिनका उदगम् मूलतः भारतीय संस्कृति से था। पाँच सौ वर्ष पूर्व गुजरात से सूफी इस्लाम के प्रचारक यहाँ आए और फिर शनै शनै यहाँ के लगभग सभी नाग्रिक मुसलमान बन गये। पर 1500 साल के हिंदू शासन का असर अभी भी दिखता है। पूरे इंडोनेशिया में बाली द्वीप अभी भी हिंदू बहुल प्रदेश है और यहां के नब्बे प्रतिशत नागरिक हिंदू हैं। बाली की चर्चा बाद में करेंगे।

कुछ हफ्ते हम मैरियौट होटल, सुराबया, की चौबीसवीं मंजिल पर एक बड़े और आरामदायक स्यूट में ठहरे और इंडोनेशिया के लोगों को देखने और जानने का हमें अच्छा मौका मिला। सुराबया में हमारे होटल के पास ही एक विशाल माल थी जहाँ हम अक्सर जाते थे। इतनी विशाल और चमचमाती माल हमने दिल्ली में भी नहीं देखी थी। यहाँ पर बहुमंजिला माताहारी नामक स्टोर था जिसे देख कर हम दंग रह गए। इंडोनेशिया की करंसी को रुपिया कहते है। एक भरतीय रुपये में लगभग 200 इंडोनेशियन रुपिया होते हैं। एक जूता जिसका दाम पाँच लाख इंडोनेशियन रुपिया लिखा होगा वह लगभग 2500 भारतीय रुपये का ही होगा। इंडोनेशिया में गेहूं का आटा नहीं मिलता, सिर्फ मैदा मिलती है। रोटी यहाँ नहीं खाई जाती। सभी चावल खाते है वह भी इंडोनेशियन चिपकने वाले मोटे चावल। चिकन बहुत खाया जाता है इसी लिये के एफ सी कंटकी चिकन रैस्टोरैंट सदैव भरा मिलता है। नासी गोरांग ह्यफ्रइड राइसहृ हर जगह मिलता है।

मुसलमान होने पर भी इंडोनेशिया के नागरिक अभिवादन में नमस्ते करते हैं। हमने यह भी देखा कि इंडोनेशिया के लोग बहुत ही विनीत और शिष्टाचारी होते हैं। दुकानों में ग्राहकों को कर्मचारी बहुत ही शालीनता से पेश आते हैं और झुक झुक कर नमस्ते करते हैं। दिल्ली जैसी ऐरोगैंस हमने कहीं नहीं देखी। सुराबया वैसे एक भारतीय शहर जैसा ही लगा पर दिल्ली के मुकाबले सफाई कहीं अच्छी थी। सड़कों पर कारों का जमघट दिल्ली जैसा ही था और ट्रैफिक जैम भी वैसे ही थे। सड़कों पर सइकिल रिक्शे भी अक्सर दिखाई देते थे। पर्यटकों के लिये सुराबया में कुछ खास दर्शनीय नहीं था पर हम सुराबया से बाली और योग्यकर्ता की यात्रा को गए जहाँ इंडोनेशियन कलचर और संस्कृतिक धरोहर को समीप से देखने का मौका मिला।

सुराबया से बाली की हवाईयात्रा मात्र 40 मिनट की थी। बाली एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर एक बड़े चौराहे पर हमने महाभारत के घटोत्कच की विशाल मूर्ति देखी। रामायण और महाभरत का प्रभाव अभी भी इंडोनेशिया में और खास तौर पर बाली में बहुत है। बाली में कई जगह हमने रामायण और महाभरत के दृश्य म्ूर्तियों में जड़े देखे। जैसे एक जगह वानर सेना का लंका जाने के लिये सेतु निर्माण का बहुत सजीव चित्रण देखा। हम बाली के प्रसिद्ध बेसखी हिंदू मंदिर भी गए। शहर से तीन घंटे की ड्राइव पर पहाड़ियों मे बना वेसखी मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है और भारत से आए एक मर्कण्डेय नामक साधु ने बनवाया था। यहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की मूर्तियाँ हैं और बाली के हिंदू लोग यहाँ पूजा अर्र्चना को आते हैं। पर हमने पाया कि यहां के हिंदुओं की पूजा विधि भारत से बहुत भिन्न है। सुबह सुबह बाली की गलियों–गलियों में स्त्रियाँ पूजा के थाल लेकर चौराहों पर दौनों में पूजा के चढ़ावे रखती दिखीं। ऐसा ही नेपाल में भी मैंने पहले देखा था।

बाली में उदुब नामक एक संदर शहर भी हमने देखा। इस शहर में मंकी फॉरैस्ट नामक जगह है जहां पर एक घने जंगल में आप बंदरों की लीला प्राकृतिक रूप में देख सकते हैं। यह बच्चों के लिये विशेष आकर्षण है। फिर उबुद में मूर्तियों की बहुत सारी दुकानें हैं जहाँ पत्थर की बुद्ध की और गणेशआदि हिंदू देवी देवताओं की अलग अलग सइजों में मिलती हैं। मूर्तियाँ सस्ती भी थीं और हमारा मन किया कि कुछ मूर्तियों खरीद लें पर भारत कैसे ले जाएंगे यह सोच कर इरादा त्याग दिया। पर लकड़ी की एक अत्यंत सुंदर विष्णु की एक फुट लंबी मूर्ति हमने 13 लाख इंडोनेशियन रुपिया में खरीदी ह्यभारतीय 6500 रुपयेहृ! बाली एक बहुत सुंदर शहर है जोकि काफी भारतीय शहरों जैसा लगता है। कुछ भारतीय रैस्टोरैंट भी हमने वहाँ देखे। समुद्र का बीच भी बहुत सुंदर एवं साफ सुथरा था। वहाँ कई लोग समुद्र की लहरों पर सर्फिंग करते भी दिखे।खाना पीना भी बाली में मंहगा नहीं था। बाली में हम जहाँ भी गए बहुत से भारतीय पर्यटक दिखे जिनमें से अधिकतर नवविवाहित जोड़े थे।

सुराबया से हम इंडोनेशिया के एक बहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र योग्यकर्ता भी गए। योग्यकर्ता संस्कृत नाम लगता है जैसे कि जर्य–कर्ता ह्यराजधानी जकार्ताहृ। योग्यकर्ता को जोगजकार्ता भी कहते हैं। सुराबया से योग्यकर्ता हम ट्रेन पर गए। ट्रेन यात्रा लगभग 5 घंटे की थी बहुत कुछ भारत में ट्रेन यात्रा के समान थी। फर्क स्टेशन की सफाई में था और भारत की तरह स्टेशन पर खोंचे वाले नहीं थे। हम ऐग्जीक्यूटिव क्लास में गए। डिब्बे कुछ छोटे थे और हिचकोले कुछ अधिक। रास्ते में हरे भरे खेत ही खेत थे बिल्कुल भारत की तरह।

योग्यकर्ता में देखने लयक बहुत जगह हैं। शहर से दो घंटे की ड्राइव पर प्राम्बनन हिंदू मंदिर समूह हमने देखा। यह मंदिर समूह लगभग 1200 वर्ष पुराना है और इसमें सबसे बड़ा मंदिर शिव और दुर्गा का था। विष्णु एवं ब्रह्मा के मंदिर भी यहां हैं। यह मंदिर हिंदू संजय डाइनैस्टी के समय बनवाया गया। बहुत ही सुंदर यह मंदिर अब पूजा इत्यादि के लिये नहीं है और मात्र पर्यटक केंद ही है। होगा भी कैसे। यहाँ हिंदुओं की संख्या नगण्य है। यह मंदिर यूनैस्को द्वारा प्रमाणित है और भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। मंदिर के निर्माण में सीमैंट जैसी वस्तु का प्रयोग नहीं किया गया था। इसी से दो भारी भूकंपों में मंदिर तहस नहस हो गया था। पिछला महाभूकंप साल 2006 में आया था। एक ज्वालामुखी पर्वत समीप ही है जिसके कारण छोटे मोटे भूकंप यहाँ आते रहते हैं। मंदिर का पुनरनिर्माण डच सरकार के विशेषज्ञों ने किया और यह अब भी जारी है।

प्राम्बनन मंदिर समूह की तरह ही बोरोबुदूर बुद्ध मंदिर भी योग्यकर्ता में है। यह मंदिर भी 1200 वर्ष पुराना है और शैलेंद्र डाइनैस्टी के बौद्ध राजाओं द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर भी यूनैस्को द्वारा प्रामाणिक साइट है और पर्यटकों के लिये प्राम्बनन जैसा ही आकर्षण केंद्र है। यकीनन मंदिर का रखरखाव बहुत अच्छा है पर देखने का टिकट विदेशियों के लिये बहुत मंहगा है।प्राम्बनन और बोरोबुदूर मंदिरों को देखने के लिये रियायती टिकट भी चार लाख इंडोनेशियन रुपिया ह्यभारतीय दो हजार रुपयेहृ प्रति व्यक्ति था। इंडोनेशियन नागरिकों के लिये यह टिकट बहुत सस्ता था।

हमने योग्यकर्ता में रामायण का मंचन भी देखा। यहाँ रामायण नृत्य नटिका का मंचन पिछले 30 सालों से बिना नागा प्रतिदिन होता रहा है जोकि एक गिनिस बुक रिकॉर्ड है। करीब डेढ़ घन्टे की यह नृत्य नाटिका अत्यंत सुंदर थी। गाने वाले और वाद्य बजाने वाले मंच की बाईं तरफ वैठे थे। नाटह का आरंभ मारीच कांड से हुआ और अंत रावण वध में। सीता को इंडोनेशिया में सिंता कहते हैं बाकी नाम वही हैं। हनुमान को व्हाइट मंकी के रूप में दर्षाया गया। नाटक से पहले बताया गया कि यह वाल्मीकि रामयण की कथा है।

इंडोनेशियन स्त्रियों में हमने दो काफी अलग अलग प्रकार देखे। एक तो बिल्कुल वैस्ट्रनइज्ड लडकियाँ जोकि शार्ट पैंट या स्कार्ट पहनती हैं और दूसरी हिजाब पहने सिर को ढके स्वरूप में लड़कियाँ। इन्डोनेशिया के लोग बहुत कट्टर इसलाम मानने वाले नहीं लगते। यह इसी से झलकता है कि लोग नमस्ते करते हैं और रामायण महाभारत की धरोहर का मुसलमान होते हुए भी यह लोग संरक्षण करते हैं। पर मुझे लगा कि कट्टर इसलाम यहाँ भी अपने पाँव पसार रहा है। हम लोग क्रिसमस में वहाँ थे और उस समय यह फतवा ज़ारी किया गया कि सांता क्लॉज की वेशभूषा कर्मचारियों को पहनने पर मजबूर न किया जाय। नतीज़ा यह हुआ कि मॉल में क्रिसमस की धूम काफी कम हो गई। नये साल को अनइस्लामिक मान कर न मनाया जाए ऐसा भी कुछ मुस्लिम संगठनों ने कहा। पर सुराबया में हमने नये साल को मनाने के लिये बहुत उत्सह देखा। होटल की चौबीसवीं मंजिल से पूरा शहर आतिशबाजियों से परिपूर्ण दिखा।

इंडोनेशिया में भारत से अधिक पर्यटक आते हैं। पर भरतीय पर्यटकों की संख्या अभी भी बहुत कम है। हमारी साँझा हेरिटेज़ को देखते हुए मुझे लगता है कि भारत में इंडोनेशिया एक पर्यटक केंद्र के रूप में अबश्य उभरेगा।

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

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