My experiences with Dhyan
निसंदेह अर्जुन करना चंचल मन का निग्रह दुष्कर है, अपनाकर वेराग्य प्राप्त यह हो जाता कर सतत यत्न है

ध्यान: मेरे कुछ अनुभव – राजीव कृष्ण सक्सेना

I started dhyan (meditation) almost 38 years ago. In this short article, I have briefly described the experience and the effect it has brought to my life. Rajiv Krishna Saxena

ध्यान: मेरे कुछ अनुभव

आध्यात्म की ओर मेरा झुकाव लगभग 47 वर्ष पहले शुरू हुआ। तब मैं पी एच डी डिग्री हेतु शोध कार्य में व्यस्त था। विज्ञान में शोध करते करते मुझमें यह प्रश्न जागा कि लगभग सभी वैज्ञानिक आविष्कार और खोज पश्चिमी देशों में ही हुई हैं और ऐसा क्यों है कि प्रायोगिक विज्ञान (ऐक्सपैरीमेंटल साइंस) में भारत का योगदान ना के बराबर रहा है। यह प्रश्न मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता था। सबसे पूछता था पर उत्तर कभी न मिलता। इसी प्रश्न के उत्तर हेतु मैंने भारतीय एवं विश्व इतिहास और दर्शन पढ़ना आरंभ किया और मेरा परिचय भारतवर्ष के प्रचीन दर्शनों से हुआ। विवेकानंद सहित्य नें मेरी बहुत मदद की। अब इतने वर्षों के बाद जो इस प्रश्न का जो उत्तर मैंने पाया है उसे मैंने संक्षेप में एक लेख में व्यक्त किया है जो कि गीता–कविता में संकलित है (देखें लेखः तत्वचिंतन भाग 6: भारत, कितना ज्ञानी, कितना विज्ञानी )

भारतीय दर्शनों में एक विशेषता यह है कि वह कहते हैं कि आप किसी भी कथन को या विचार को स्वयं परख लें और तभी विश्वास करें।यह स्वतंत्रता पश्चिमी धर्म–दर्शन नहीं देते। वह अपनी बात मानने को आपको बाध्य करते हैं। परख करने पर ही विश्वास करना एक आधुनिक वैज्ञानिक विधि जैसी है और क्योंकि मैं वैज्ञानिक हूं यह विधि मैंने अपनाने की सोची। भारतीय दार्शनिक तध्यों को परखने की विधि योग की विधि है। ध्यान की विधि है। पतंजली के योग दर्शन में, विवेकानंद के सहित्य में और भगवत गीता में ध्यान की विधि का वर्णन है। तदानुसार लगभग 38 वर्ष पहले मैंने ध्यान करना आरंभ किया।

पतंजली योग–दर्शन के दूसरे सूत्र में ही कहा गया है कि मन में उठते विचारों को रोकना ही योग है। भगवत गीता में अर्जुन कहता है कि विचारों को रोकना इतना कठिन है जैसा की वायु के प्रवाह को रोकना। श्री कृष्ण उत्तर देते हैं कि निसंदेह यह कार्य बहुत कठिन है पर निरंतर अभ्यास से यह हो सकता है। मैं निजी अनुभव से भी कह सकता हूँ मन की गति को रोकना बेहद कठिन है। आप आँखें मूंद कर शांत बैठें और विचारों को रोकने का प्रयास करें तो यह  कठिनाई समझ में आएगी। जितना भी प्रयत्न करेंगे मन मस्तिष्क में विचारों का जमघट लग जाएगा। विचारों को भगाने के लिये आवश्यक है कि मन को किसी कार्य में लगा दें। मन को एकाग्र करने के या बाँधने के उपाय कई हैं।मन को किसी कार्य में लगा दें तो फिर वह कुछ अन्य सोच नहीं सकता। एक बहुत अच्छी विधि है प्राणायाम की। सांस के आने जाने को अनुभव करना मन को एकाग्र करता है। कुछ लोग मंत्र का सहारा ले सकते हैं। किसी मंत्र को लगातार मन ही मन दोहराना सहायता कर सकता है। आप कुछ बार मंत्र पढ़ेंगे पर मन फिर कुछ और सोचने लगेगा। फिर से उसे वापस ला कर मंत्र में लगाना होगा। श्री कृष्ण कहते हैं कि चंचल मन बार बार भागेगा पर साधक को उसे बार बार वापस लाकर ध्यान में लगाना होगा।

तेरापंथ के जैन आचार्य युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रेक्षा योग का निर्देशन करते थे। यह भी एक कारगर विधि है। आँख बंद कर के कुछ देखने का प्रयास करें। प्रातः काल (4 से 6 बजे का समय उपयुक्त है) ध्यान करें। अंधेरे कमरे में शांति से सुखआसन, अर्धपद्मासन या कर सकें तो पद्मासन में आँख मूंद कर बैठें। आप पाएंगे कि आँख बंद कर लेने पर अंधेरा नहीं हो जाता। कुछ समय में रश्मियों के कण या झुण्ड दिखने आरंभ हो जाते हैं। उन्हीं में से किसी को देखने का प्रयास करें । किसी एक को जब तक हो सके देखते रहें। बाद में इस कार्य में मन लगने लगता है। अक्सर मैं देखता कि कोई रश्मि पुंज वर्ताकार घूम रहा है। यह कभी लाल कभी पीला और कभी नीले रंग का पुंज होता। इसको घूमते देखते रहने में मन अक्सर रम जाया करता।एक वैज्ञानिक के नाते से मैं सोचता हूं कि यह ज्योतिपुंज हमारे मस्तिष्क के न्यूरौंन्स में होने वाली विद्युत गति के फलानुसार प्रगट होता होगा। कभी कभी ध्यान में बेठे बैठे तेज सुगंध का अनुभव भी मुझे हुआ है। वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा। धीरे धीरे ध्यान में बैठने के कुछ समय बाद मुझे ऐसा लगता कि शरीर कुछ जम सा रहा है। जैसे कि गर्म जैली को एक बर्तन में ठंडे में रख दो तो जैली जमने लगती है। यह बड़ सुखद अनुभव होता।यह वर्षों तक चला।

फिर एक दिन अजीब अनुभव हुआ। ध्यान करते करते अचानक लगा कि मस्तिष्क की बत्ती गुल हो गई। ऐसा लगा कि जैसे किसी ने स्विच ऑफ कर दिया और सारे ज्योतिपुंज और प्रकाश बुझ गऐ। इसको लगभग बीस वर्ष हो गए हैं। उसके बाद मुझे फिर कभी उस तरह के ज्योतिपुंज और घूमते हुए ज्योतिकण दिखाई नहीं दिये। शायद यह ध्यान की यात्रा में यह पड़ाव आता है। आज भी आँखें बन्द कर ध्यान करते समय एक क्षीण ज्योति क्षेत्र दिखता है पर वह इतना तीव्र नहीं होता जितना कि ध्यान के आरंभ के समय होता था। उस क्षीण ज्योति क्षेत्र में अब किसी बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने पर थोड़ी देर में आँखें स्वतः ही जोर से भिंच जाती हैं और एक लगता है जैसे कि ज्योति हज़ार गुणा बढ़ कर पूरे शरीर पर बरस जाती है। ध्यान के समय मन में विचार शून्यता अभ्यास स्वरूप अब स्वतः ही हो जाती है पर कुछ क्षण ही ठहरती है। विवेकानंद कहते हैं कि यह विचार शून्यता अगर एक दो घंटे तक हो सके तो वह ही समाधि का लक्ष्य है। यह बहुत कठिन कार्य जान पड़ता है।

बीच में ऐसा समय भी आया जब शरीर के अंगों में स्वतः क्रिया होनी प्रारंभ हो गई। यह तब हुआ जब मैंने शरीर के भिन्न अंगों में ध्यान केंद्रित करने का प्रयास शुरू किया। धीरे धीरे केंद्रित ध्यान को रीढ की हड्डी में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर लेजाने में विचित्र अनुभव होते। अगर हाथ की उंगलियों में ध्यान केंद्रित करता तो स्वतः ही हाथ उठने लगता और धीरे धीरे इधर उधर ऐसे लहराता जैसे कि उसका अपना मन हो। दाएं हाथ में ध्यान केंद्रित करने से दायां हाथ क्रिया करता और बाएं हाथ में ध्यान केंद्रित करने से बायां हाथ। बीच में अगर मैं चाहता तो हाथों की क्रिया रोक कर उन्हें वापस घुटनों पर ले आ सकता था पर खुली छूट देने पर उनकी गति कायम रहती। सर के मध्य ध्यान केंद्रित करने से स्वतः ही सर गर्दन की धूरी पर धीरे धीरे घूनता।मुझे लगता है कि इन क्रियाओं और अनुभवों के पीछे कोई दिव्य कारण नहीं है पर यह ध्यान की प्रक्रिया का मस्तिष्क पर होने बाला प्राकृतिक असर है। जब मैंने ध्यान करना आरंभ किया था तब मुझे लगता कि कोई मुझे बताए कि क्या ध्यान में मैं कुछ प्रगति कर भी रहा हूं या नहीं। एक बार मुझे युवाचार्य महाप्रज्ञ से वार्तालाप का सुअवसर प्राप्त हुआ। उन्हों ने मेरे अनुभवों को ध्यान से सुन और कहा कि ऐसे अनुभव ध्यान में होते है।

फिर कुछ ऐसी बातें हुईं जिन्हों ने मुझे अचंभित किया। नेपाल मेरी ससुराल है और एक बार जब मैं नेपाल की यात्रा पर था हम लोग एक अस्सी साल की बूढ़ी गुरू माँ के पास गए जो कि परिवार की गुरू मानी जाती थीं। वे काठमान्डू से दूर एक आश्रम में रहती थीं और तपस्या ध्यान में समय गुजारती थीं। हम सब उनके सामने बैठे थे। मैं पीछे की ओर बैठा था। परिवार और गुरू माँ का वार्तालाप नेपाली में हो रहा था जोकि मुझे कु्छ समझ नहीं आ रहा था। फिर गुरू माँ ने मेरी पत्नी को कुछ कहा और सभी परिवार जन मुड़ कर मुझे देखने लगे। मुझे आश्चर्य हुआ पर बाद में मुझे बताया गया कि गुरू माँ कह रहीं थीं कि “इसके (यानि कि मुझे) प्रातःकाल के कार्यक्रम में बिल्कुल विघ्न न डाला जाए क्योंकि इसका ध्यान लगा हुआ है”। सुन कर मुझे झुरझुरी सी हुई। गुरू माँ को कैसे मालूम कि मैं ध्यान करता हूँ?

एक और बात का अनुभव मुझे धीरे धीरे लगने लगा। मैंने पाया कि मेरे कार्य और दैनिक जीवन की सम्स्याएं स्वतः ही सुलझने लगीं। कई बार तो ऐसे कार्य अनायास ही हो गए जिनकी उम्मीद मुझे बिल्कुल न थी। फिर जो लक्ष्य मैं रखता वह अक्सर प्राप्त हो ही जाता। हो सकता है यह मात्र संयोग ही हो पर मुझे लगा कि मेरे ध्यान का कुछ असर मेरे राजमर्रा के जीवन में पड़ रहा था। मैं यहां कह दूं कि भारतीय योगदर्शनÊ संख्ययोग और वेदांत एक वरदान–दाता प्रभु को नहीं मानते। पिछले तीस सालों के चिंतन मनन के फलस्वरूप मैं भी इसी मूल सत्य में विश्वास करता हूं कि एक निर्गुण सर्वव्याप्त प्रभुरूपी ब्रह्म ही अंतिम सत्य है। पर कोई प्रार्थना को सुनकर उसे मानने या न मानने वाले और हमारे जीवन के कार्याें का लेखा जोखा रखने वाले भगवान का अस्तित्व युक्ति से साबित नहीं होता। फिर ध्यान का असर यदि जीवन में पड़ता है तो उसका कारण प्रकृति मे निहित प्राण तत्व ही है जैसा कि मैंने अपने लेखप्रार्थना की सफलता के गुर में बताया है।

मैंने यह भी पाया कि ऐसे समय भी आते हैं जब ध्यान ठीक से नहीं लगता। ऐसा भी हुआ है जब महीनों तक ध्यान ठीक से नहीं जमा पर उसके बाद फिर लगने लगा। इसमे हताशा की बात नहीं है यह भी एक प्राकृतिक नियम लगता है। ध्यान की प्रक्रिया के फल स्वरूप कुछ स्थाई परिवर्तन मुझमें आए हैं। किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित करना आसान हो गया है। इससे कार्य कुशलता बढ़ती है। जब भी मैं ध्यान से कुछ पढ़ता हूं या सुनता हूं तो सांस अनायास ही धीमी हो जाती है आँखें मुँदने सी लगती हैं सिर पीछे की ओर खिंचता सा लगता है। चुपचाप बैठूँ तो भी आँखें मुँदने लगती हैं और मन अंतरमुखी होने की चेष्टा करता है। कई बार आसपास बैठे लोग मुझसे पूछते भी हैं कि क्या नींद आ रही है। अब उनसे क्या कहूँ।

राजीव कृष्ण सक्सेना

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15 comments

  1. Muje ek samsya he muje lagta he Ki kabhi kabhi me bahut tez bolta Hu or kabhi bilkul dheeme. Saso ka jab pravah bigada Hua hota he to aisa hota he kya?

  2. apko jo bhi ho raha hai sukad ho raha hai.. karte rahihya… me bhi dhyan 15 year se kar raha hoo.. or mere bhi anubhav aap jaise hi hai….. ye gunge ke gur ka swad hai.. sirf anubhav kiya ja sakta hai.. kisi ko batyge to koi manga hi nahi….

    Dhaynvad
    S.mudliar

    • अगर आप प्रतिदिन 1 घंटेतक सुबह आज्ञा चक्र पर ध्यान करते है तो कुछ समय बाद सिद्धिया भी मिलती है

  3. Maine kuch samay se hi dhyan shuru kiya, kah sakta hu kuch kuch ese hi anbhav aa rahe hai
    Thanks
    Ashish sharma

    • सुनील बड़थ्वाल

      आप सही कह रहे है एक बार जब में ध्यान कर रहा था तब मैंने देखा जैसे मेरी आँखों हजारों सूर्य का प्रकाश भर गया हो। जब भी ध्यान करता तो शरीर ऐसे लगता जैसे हो ही न आज भी जब ध्यान करता हूँ तो शरीर मे विचित्र अनुभूति होती है लेकिन पिछले कुछ माह से जो अनुभूति पहले हो रही थी अब नही हो रही है मन बैचेन रहता है उस अनुभूति को पाने के लिए।

  4. Thanks,
    I have read your experiences during meditation.
    I am also a good practioner of meditation and have the same experiences
    May i know your contact no.If possible pl share
    My no is 9839970125

  5. Very nice to read your experience. Whenever I practice meditation I am not sure whether I am on the right path. But your experience should work as a guide. Thanks for sharing.

  6. मैने 11 दिन का ध्यान शिविर किया था उसमे मुझे बचपन se ab tak k सभी number yaad aagaye बिल्कुल क्लियर

  7. सर मैंने आज आपका अनुभव पढ़ा|
    मुझे भी लगभग कुछ इसी तरह के अनुभव हो रहे हैं|
    ध्यान करने के बहुत से मार्ग इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं| कुछ आसान हैं और कुछ कठिन और कुछ केवल भुलावा भर हैं|
    मै अपने अनुभव से ये कह सकता हूँ कि मुझे बहुत ही कम समय में (2 महीने से भी कम समय में) बहुत सी अनुभूतियाँ होने लगीं और एक अलग सा अध्यात्मिक आनंद जीवन में तब आ गया जब भौतिक रूप से मेरा जीवन कई कठिनाईयों में था|
    मुझे अपने अध्त्मिक गुरु (गुरुदेव राम लालजी सियाग) की प्राप्ति श्री अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद कपिल राज (krs channel वाले ) के कुंडलिनी जागरण पर दिए गए विडियो के माध्यम से हुई थी|

  8. Mai dhiyan pr bhrosha nahi krti thi na kbhi ki thi . Ak din mai bhut presan thi kuchh smjh nahi aa rha tha kiya kaise kru tbhi achanak mujhe lga agar dhiyan se Santi milti hai to mujhe bhi milni chahiye bus ye soch kr mai Night ke 2.30 bje baith gyi Aur tb mai dekhi aakh band krne ke bad bhi mere aakho me andhera nahi huaa Aur aise adbhut chije dikhne lgi ki mai dhang ho gyi dhiyan se uthne ke bad mujhe belive hi nahi ho rha tha ki vo such tha ya meri kalpna thi fir next day vaise hi Aur bhi adbhut drish dekhne lgi tb mujhe ykin ho gya ki ye such hai dhiyan me hi sb kuchh hai jo bhi dhiyan krega vo sb kuchh apne aap hi smjhne ki kshamta bn jayegi …….

  9. कृपया बताए – क्या रात के समय, सोने के दौरान, हम ध्यान लगा सकते है। जैसे, सोने के समय, लेटे हुआ धयान लगे, और फुल नाईट ध्यान में रहे।
    मैंने कई बार कोशिश के, लकिन कुछ ही समय बाद नीड आ जाती है। ध्यान के नींद में डर भी लगता है। कभी कभी पैर या हाट आपने आप ऊपरउठ जाते है। कृपया सही रास्ता बताए।

  10. Muje bhi ase anubhav hote he

    Or aapke is lekh se muje or prerna mile he

  11. Super post ji

  12. Meri isthiti kuchh our hi hai mujhe kabhi lagta hai mujhe sab mil gya kabhi kuchh bhi nhi pr kisi esi chijhh ki talas me laga rehta hu jo mujhe pta nhi kab se chahiye our wo mujhe pata nhi kaha milega meri umar 26 hai our me abhi tak bhatak rha hu pta nhi kyo our kya chahiye our ye khoj kab khatm hogi

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